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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org त-मैपज्य - रत्नाकरः ३९८ संस्थाप्य गोलकं भाण्डे रुन्धयेत्तु दृढं मुखम् 1 पाचयेद्वालुकायन्त्रे दिनमेकं दृढामिना || स्वाङ्गशीतलमादाय सम्पूज्य द्विजदेवताः । पिप्पलीमधुना युक्तं सर्वमेहेषु योजयेत् ॥ क्षीरान्नं योजयेत्पथ्यमनल्पक्षारवजितम् । रसो वङ्गेश्वरो नाम सर्वमेह निकृन्तनः ॥ शुद्ध पारद १ भाग और बंग भस्म तथा शुद्ध गन्धक ३ - ३ भाग ले कर सबको एकत्र खरल करके एक दिन घृतकुमारीके रसमें घोटें और फिर उसका एक गोला बना कर उसे शराबसम्पुटमें बन्द करें तथा उस सम्पुटकेा बालुका यन्त्र में रख कर १ दिन तीत्राग्निपर पकायें । इसके पश्चात् यन्त्रके स्वांग शीतल होने पर उसमें से को निकाल कर खरल करके रक्खें । ब्राह्मण और देवताका पूजन करके इसे पीपल के चूर्ण और शहदके साथ सेवन करना चाहिये । इसके सेवन से समस्त प्रकारके प्रमेह नष्ट होते हैं । पथ्यापथ्य —— यथा सम्भव लवणका त्याग करना और दूध भात खाना चाहिये । ( मात्रा - १ रत्ती । ) (६०६१) रसचन्द्रिकावटी ( रसे. सा. स. ; र. च । शिरोरोगा . ; र. । शिरोरोगा. ) भै. त्रैलोक्यविजयावीजं बीजमुन्मत्तकस्य च । कण्टकारीबीजकञ्च इज्जलबीजमेव च ॥ बीच वृद्धदारस्य समौ गन्धकपारदौ । आर्द्रका कार्य्या कलायपरिमाणतः ॥ [ कारादि एषा तोयानुपानेन प्रात: खाद्या हिताशिना । चिरजं सर्वरोगञ्च सन्निपातं सुदारुणम् ॥ आमवातं शिरोरोगं मन्यास्तम्भं गलग्रहम् । ग्रहणीं श्लीपदं हन्ति त्रदृद्धिं भगन्दरम् || कामलां शोथपाण्डुत्वं पीनसार्शोगुदामयान् । टिका चन्द्रिका नाम वासुदेवेन भाषिता ॥ भांग बीज, धतूरे के बीज, कटेली के बीज, समुद्रफल के बीज, विधारेके बीज, शुद्ध पारद और शुद्ध गंधक समान भाग ले कर प्रथम पारे गंधककी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियांका चूर्ण मिला कर सबको अदरक के रसमें घोट कर मटरके बराबर गोलियां बना लें । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इन्हें प्रातः काल सेवन करना और पथ्य पूक रहना चाहिये । अनुपान -- जल | • इनके सेवन से समस्त जीर्ण रोग, सन्निपात, आमवात, शिरोरोग, मन्यास्तम्भ, गलग्रह, ग्रहणी, श्लीपद, अन्त्रवृद्धि, भगन्दर, कामला, शोथ, पाण्डु, पीनस और अर्शादि रोग नष्ट होते हैं । (६०६२) रसतालेश्वररसः (रसे. सा. सं.; र. रा. सु. । कुष्ठा. ; रसे. चि. म. । अ. ९. ) गुआ शङ्खकर चूर्णरजनी भल्लातकार नेः शिखा कन्यासूर्य्यपयः पुनर्नवरजो गन्धन्तथा सूतकम् गोमूत्रे पाचितं विडङ्गमरिचैः क्षौद्रञ्च तत्तुल्यक हन्यादाशु विचर्चिकारुजमिदं कण्डू तथा कैटिमम् ॥ शुद्ध चौंटली, शंख भस्म, करञ्जके बीज, हल्दी, शुद्ध भिलावा, कलिहारी, घीकुमारका गूदा For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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