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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra धूपप्रकरणम् ] www.kobatirth.org चतुर्थो भाग: अथ रकारादिधूपप्रकरणम् (६००१) राजवल्लभधूपः (र.स. क. । उल्ला. ५ ) कस्तूरीन्दुश्च वाहीकं नखं मांसी च सर्जकम् । गुरु सिता सर्व क्रमवृद्धं समं पुरम || स्तोकं स्तोकं क्षिपेत्तैलं दिनैकमथ कुदृयेत् । वतिं कुर्यात् प्रीता सा दिव्यं धूमं विमुञ्चति ।। सर्वदेवप्रियः सर्वमन्त्रसिद्धिप्रदायकः । स्नाने वस्त्रे तागारे धूपोऽयं राजवल्लभः ॥ कस्तूरी १ भाग, कपूर २ भाग, केसर ३ भाग, नखी ४ भाग, जटामांसी ५ भाग, राल ६ भाग, नागरमोथा ७ भाग, अगर ८ भाग और मिश्री ९ भाग तथा गूगल सबके बराबर ( ४५ भाग ) लेकर गूगल के अतिरिक्त सब चीजोंका बारीक चूर्ण बना लें और फिर उसे गूगल में मिला कर उसमें थोड़ा थोड़ा तेल डालते हुवे दिन भर कूढें । तदनन्तर उसकी बत्तियां बनाकर सुरक्षित रक्खें । इन्हें जलानेसे अत्युत्कृष्ट सुगन्धियुक्त धूम्र निकलता है । यह धूप सर्व - देवप्रिय और सर्वमन्त्र सिद्धिदायक है | एवं स्नान - जल, वस्त्र तथा रतागारको सुगन्धित करनेके लिये उपयोगी है । (६००२) रालादिधूप : (१) ( यो. र. । अर्शा. ; वृ. यो त । त. ७१ ) रालाचूर्णस्य तैलेन सार्षपेण युतस्य च । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धूमदानेन युक्त्याsर्शी रक्तस्रावी निवर्त्तते ॥ रालके चूर्णको सरसोंके तैलमें मिला कर धूनी देनेसे अर्श (बवासीर) का रक्तस्राव बन्द हो जाता है । ३७३ (६००३) रालादिधूपः (२) ( वृ. नि. र. । मसूरिका. ) रालहिरसोनैश्च धूपयेत्ता मसूरिकाः । कृमयो न पतन्त्यत्र जाताः शाम्यन्ति ते लघुः ॥ राल, हींग और लहसन समान भाग लेकर सबको एकत्र पीस लें । इसकी धूप देने से मसूरिकामें कृमि उत्पन्न होते और यदि हो गए हों तो नष्ट हो जाते हैं। नहीं 1 (६००४) रुगादिधूपः (वै. जी. | विला. १ ) अयि कुशाग्रसमान मते मतिमतामतिमन्मथमन्थरे । ज्वरहरं रुरिष्टशिवावचायवहविर्जतुसर्षपधूपनम् ॥ कूठ, नीम के पत्ते, हर्र, बच, जौ, लाख और सरसों समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । इति रकारादिधूपप्रकरणम् 95042 इसे घी में मिलाकर धूप देने से ज्वर नष्ट होता है । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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