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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६० भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [रकारादि - विधि--२ सेर तिल तैल में उपरोक्त काथ | आढयवाते हनुस्तम्भे शिरोवातापतानके । और कल्क तथा २-२ सेर दही, आरनाल, उड- भ्रशंखकर्णनासाक्षिजिबास्तम्भेऽपबाहुके । दका काथ, मूलीका रस और ईखका रस मिला | कलायखञ्जतापङ्गं सर्वाङ्गकाङ्गमारुते । कर पकावें । जब जलांश शुष्क हो जाय तो | अदिते पादहर्षे च पक्षघाते प्रशस्यते ॥ तेलको छान लें। उरुस्तम्भं सुप्तवातं नाशयेन्नात्र संशयः । ___यह तेल प्लीहा, मूत्रावरोध, श्वास, खांसी रास्नापूतीकनामैतत्तलमात्रेयनिर्मितम् ॥ और वातज रोगोंको नष्ट करता है। दशमूलकी प्रत्येक ओषधि, खरैटी, देवदारु, (५९६२) रास्नापूतिकतैलम् असगन्ध, शतावर, बरनेकी छाल, अरण्डकी जड़, (यो. र.) संभालु, अरणी, सहंजनेकी छाल, क्षीरमोरट, पियादशमूलबलादारु अश्वगन्धा शतावरी। | बांसा, चीतेको जड़, करंज, अंकोलकी जड़, वरुणैरण्डनिर्गुण्डीतांरीशिग्रमोरटम ॥ पुनर्नवा, भूपील, सूरजमुखी, धमासा, जीवन्ती, सहाचरं चित्रमूलं करनाङ्कोलमूलकम् ।। कुचला, लाल अरण्डकी जड़, जटामांसी, सहजनेकी पुनर्नवां च भूपीलु अर्कपुष्पी दुरालभा॥ छाल, सफेद आक, जौ, बेर और कुलथी १-१ जीवन्ती विषतिन्दुश्च वातारिहिंस्राशिकम् ।। तोला; रास्ना ३७ तोले और पूतिकरंजकी अलर्फयवकोलं च कुलित्थानां कषायकम् ॥ | छाल ७४ तोले ले कर सबको एकत्र कूट कर एतेषां च समां रास्ना पूतिकं च तयोः समम् । ८ गुने ( १४ सेर ६४ तोले ) पानीमें पकायें अष्टभागावशेषं तु कषायमवतारयेत् ॥ | और जब १४८ तोले पानी शेष रह जाय तो तत्पादं तिलतैलं च त्वजाक्षीरं च तत्समम् । | छान लें। गुग्गुलं तगरं मांसी त्रिकटुत्रिफलानि च ॥ तदनन्तर इस काथमें ३७ तोले तिलका चातुर्जातं कचोरं च विडङ्गामरदारु च ।। तेल, ३७ तोले बकरीका दूध और निम्न लिखित हिंगुरास्नावचातिक्तापाठायष्टिकचित्रकम् ॥ कल्क मिला कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी प्रियङ्ग पिप्पलीमूलं चन्दनं चव्यदीप्यकम् । | जल जाए तो तेलको छान लें। वरालं चम्पकं कुष्ठं मञ्जिष्ठामिशिसर्षपम् ॥ वल द्रव्य---गूगल, तगर, जटामांसी, सोंठ, जातीफलं सुगन्धं च पाठोशीरं समांशकम् । मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा, आमला, दालचीनी, एततैलस्य षष्ठांशं कल्कद्रव्याणि दापयेत् ॥ तेजपात, इलायची, नागकेसर, कचूर, बायबिडंग, सुमुहूर्ते मुनक्षत्रे नववस्त्रेण पीडयेत् । | देवदारु, हींग, रास्ना, बच, कुटकी, पाठा, मुलैठी, पानलेपननस्याद्यशिरोबस्तिषु पूजितम् ॥ चीता, फूलप्रियंगु, पीपलामूल, सफेद चन्दन, धनुर्वातान्तरायामं गृध्रसीमपबाहुकम् । चव, अजवायन, लौंग, चम्पा, कूठ, मजीठ, सौंफ. आक्षेपके व्रणायामे विश्वाच्यामपतन्त्रके ॥ सरसों, जायफल, सुगन्ध तृण, पाठा और खस; For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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