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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तैलप्रकरणम् ] - चतुर्थों भागः ३५९ आत्मगुप्ताफलं मूर्वी वार्ताकानि मधूलिकाम् । विधि--१६ सेर शुद्र तिल तेलमें उपरोक्त सहदेवामथैरण्डं रीहिषं नवमालिकाम् ॥ क्वाथ और कल्क तथा १० द्रोण ( ८ मन ) दूध कायस्थां व वयस्थां च मधुपर्णी च चित्रकम् । और ४ सेर घी मिला कर पकावें । जब जलांश महापुरुषदन्तां च बलां सकदलीफलाम् ॥ शुष्क हो जाय तो छान लें । देवदार्वगरुश्रेष्ठं चन्दनं परिपेलवम् । इसे भोजन, पान, नस्य, अभ्यंग और बस्ति नीलोत्पलमुशीराणि मृद्वीकां साम्लवेतसाम् ॥ द्वारा प्रयुक्त करना चाहिये। एभिः पलशतैः पिष्टैः सम्यक् तैलं विपाचयेत् । यह तेल वातव्याधि, क्षतक्षीण, शिरोग्रह, भोजनाभ्याने पाने बस्तौ नस्ये च शस्यते ॥ अपस्मार, रक्तगुल्म और शुक्रनाशमें उपयोगी है। वातव्याधिषु सर्वेषु क्षतक्षीणे शिरोग्रहे। इसके सेवनसे बल और मांसकी वृद्धि अपस्मारे रक्तगुल्मे पुंसां नष्टे च रेतसि ॥ । | होती है। रास्नातैलमिदं श्रेष्ठं बलमांसविवर्धनम् ॥ काथ--रास्नामूल १२॥ सेर, खरैटीकी जड़ ___(५९६१) रास्नादितैलम् ६। सेर, शतावर ६। सेर, गिलोय ६। सेर, बरनेकी (च. स. । चि. स्था. ६ अ. २८) छाल ६। सेर तथा संभाल, सहजनेकी छाल, | रास्नाशिरीषयष्टयादशुण्ठीसहचरामृताः। . अरण्डमूल, सिरसकी छाल, अमलतास, गोखरु | श्योनाकदारुसम्पाकाहयगन्धात्रिकण्टकाः ॥ और अजवायन ५-५ ,पल (२५-२५ तोले ) एषां दशपलान् भागान् कषायमुपकल्पयेत् । ले कर सबको एकत्र कूट कर बारीक करें और | ततस्तेन कषायेण सर्वगन्धैश्च कार्षिकैः॥ फिर उसे १०० द्रोण ( ८० मन) पानीमें प- | दध्यारनालमाषाम्बुमूलकेक्षुरसैः शुभैः। कावें । जब ३२ सेर पानी शेष रह जाय तो पृथक् प्रस्थोन्मितः साढे तैलपस्थं विपाचयेत् ॥ काथको छान लें। प्लीहमूत्रग्रहश्वासकासमारुतरोगनुत् ॥ कल्क--मुलैठी, मालतीके फूल, मजीठ, मदः । काथ--रास्ना, सिरसकी छाल, मुलैठी, सेठि, यन्तिका, खम्भारीके फल, अजमोद, लवलीफल | पियाबांसा, गिलोय, सोनापाठा, देवदारु, अमलतास (हरफारेवडी ), ताल मस्तक, कौंचके बीज, मूर्वा, असगन्ध और गोखरु १०-१० पल (५०-५० बैंगन, जलमुलैठी, सहदेवी, अरण्डमूल, रोहिष तोले ) लेकर सबको अधकुटा करके ८ गुने तृण, नवमल्लिका, काकोली, क्षीरकाकोली, गिलोय, । (५५ सेर) पानीमें पका और जब चौथाई पानी चीता, महाशतावर, खरैटी, केलेको फली, देवदारु, शेष रह जाय तो छान लें। अगर, चन्दन, मोथा, नीलोफरे, खस, मुनक्का और कल्क-- दालचीनी, तेजपात, इलायची, नागअम्लबेत सब समान भाग मिश्रित ६। सेर ले कर | केसर, कपूर, कंकोल, अगर, सिल्हक और लौंग सबको पीस लें। | ११-१। तोला लेकर सबको एकत्र पीस लें। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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