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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घृतंपकरणम् ] चतुर्थों भागः ३५५ मसूर १० तोले लेकर सबको अधकुटा करके २ / घृतपस्थं समावाप्य छागक्षीरं चतुर्गुणम् । सेर पानी में पकावें और जब आधा सेर पानी शेष | तस्मिन् दद्यादिमान् कल्कान् सर्वीस्तानक्षसरहे तो छानकर उसमें आधी सेर घी मिलाकर म्मितान् ॥ मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी जल जाए तो ब्योपं फलत्रिकं हिंङ्ग यमानी तुम्बरु बिडम् । घीको छान लें। अजाजी कृष्णलवणं दाडिमं देवदारु च ॥ - इसके सेवनसे पैतिक गुल्म, ज्वर, तृष्णा, a | पुनर्नवा विशाला च यवक्षारं सपौष्करम् । शूल, भ्रम, मूर्छा और अरुचिका नाश होता है । विडङ्गं चित्रकञ्चव हवुधा चविका वचा । एभिघृतं विपकन्तु स्थापयेद्भाजने शुभे । (५९५१) रोहिण्यादिघृतम् (२) द्वितोलकमितां मात्रां व्याधि बलमवेक्ष्य च ॥ (वृ. नि. र. । बालरोगा.) रसकेनाथ यूषेण पयसा वापि भोजयेत् । रोहिणीनिम्बखदिरपलाशककुभत्वचः । उपयुक्तघृते त्वस्मिन् व्याधीन् हन्यादिमान् निःक्याथ्य तस्मिन्निःक्वाथे सक्षीरं विपचेद बहून् ॥ यकृष्लीहोदरश्चैव प्लीहशूलं यकृत्तथा । .. . घृतम् ।। कुटकी, नीमकी छाल, खैरसार, पलाशकी कुक्षिशूलश्च हृच्छूलं पावशूलमरोचकम् ॥ विबन्धशूलं शमयेत्पाण्डुरोगं सकामलम् । छाल और अर्जुनकी छाल १६--१६ तोले लेकर छईयतीसारशूलनं तन्द्राज्वरविनाशनम् ॥ सबको ८. सेर पानीमें पकायें और जब २ सेर | | महारोहीतकं नाम प्लीहानं हन्ति दारुणम् ॥ पानी शेष रहे तो छान लें। काथ---(१) १०० पल (६। सेर) रुहेड़ेकी . आधा सेर घीमें यह क्वाथ और आधा सेर । छालको ३२ सेर पानीमें पकावें और ८ सेर पानी दूध मिलाकर पकावें । जब घृत मात्र शेष रह | शेष रहने पर छान लें। जाए तो छान लें। (२) ४ सेर बेरांको ३२ सेर पानीमें पकावे यह घृत बालकोंके लिये हितकारी है। और ८ सेर शेष रहने पर छान लें। (५९५२) रोहितकघृतम् (१) कल्क- सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा, ( भै. र. ; च. द. ; र. र. । प्लीहा. ; वं. से.; आमला, हींग, अजवायन, तुम्बरु, बिंड नमक, वृ. मा. ; वृ. नि. र. । उदरा. ; वृ. यो. त.। जीरा, काला नमक, अनार दाना, देवदारु, पुनर्नवा त. १०५; ग. नि. । घृता.) इन्द्रायणकी जड़, जवाखार, पोखरमूल, बायबिडंग, रोहीतकात्पलशतं क्षोदयेद्वदराढकम्। १ अजाजीकुष्ठलवणमिति पाठान्तरम् । साधयित्वा जलद्रोणे चतुर्भागावशेषितम् ॥ २ कारवीति पाठान्तरम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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