SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [मकारादि इसे उष्ण जलके साथ सेवन करनेसे खांसी (५११२) मरिचादिचूर्णम् (५) नष्ट होती है। (शा. ध.। खं. २ अ. ६) (मात्रा २-३ माशे ।) तक्रेण यः पिवेन्नित्यं चूर्ण मरिचसम्भवम् । (५११०) मरिचादिचूर्णम् (३) चित्रसौवर्चलोपेतं ग्रहणी तस्य नश्यति । (च. सं. । चि. अ. १९ ग्रहण्य.) | उदरप्लीहमन्दाग्निगुल्मा नाशनं भवेत् ।। मरिचः कुश्चिकाम्बष्ठादृक्षाम्लकुडवाः पृथक् ॥ ___काली मिर्च, चीतामूल और सञ्चल (काला पलानि दश चाम्लस्य बेनसस्य पलार्दिकम् । नमक ) समान भाग लेकर चूर्ण बनार्वे । सौवर्चलं विडम्पाक्यं यवक्षारः ससैन्धवः ॥ इसे तक्रके साथ संवन करनेसे संग्रहणी, शटी पुष्करमूलानि हिङ्ग हिङ्गशिवाटिका। उदररोग, तिल्ली, मन्दाग्नि, गुल्म और अर्शका तत् सर्वमेकतः मूक्ष्मं चूर्णं कृत्वा प्रयोजयेत् ॥ नाश होता है। हितं वाताभिभूतायां ग्रहण्यामरुचौ तथा॥ (मात्रा १॥-२ माशे।) काली मिर्च, कालाजीरा, पाठा और तिन्त- (५११३) मरिचादिचूर्णम् (६) डीक २०-२० तोले, अम्लवेत ५० तोले तथा (व. से. विष.) सञ्चल, वि नमक, खारी नमक, जवाखार, सेंधा सचतुर्मरिचः कर्षः चाङ्गेाः सह सर्पिषा । नमक, कचूर, पोखरमूल, हींग (भुनी हुई) और हन्ति पानप्रलेपाभ्यां चोग्रसर्पविषं भयम् ॥ हिंगुपत्री २॥-२॥ तोले लेकर चूर्ण बनावें। काली मिरचेोके ५ तोले चूर्णको चूकेके रस इसको सेवन करनेसे वातज संग्रहणी और और घीमें मिलाकर पिलाने तथा लेप करनेसे उग्र अरुचि नष्ट होती है। । सर्पविष भी नष्ट हो जाता है । ( मात्रा १-१॥ माशा । अनुपान-धी।) (५११४) मरिचादियोगः (५१११) मरिचादिचूर्णम् (४) (व. से. । बालरोगा.) (बृ. नि. र.; यो. र. । कासा.) मरिचं नवनीताढयं शोथनं भक्षयेच्छिशूः। सेवितं मधुखण्डाभ्यां चूर्ण मरिच यदि। काली मिर्चके चूर्णको नवनीतमें मिलाकर किमर्थ क्रियते चिन्ता कासश्वासपराजितैः ॥ चटानेसे बच्चोंका शोथ नष्ट होता है। काली मिर्चका चूर्ण और खांड समानभाग (५११५) मरिचायंचूर्णम् मिलाकर शहदके साथ चाटनेसे खांसी और (व. से. । अजीर्णा.) श्वासका नाश हो जाता है। मरिचाग्निकणा पथ्या दाडिमश्च महौषधम् । ( मात्रा-३ माशे।) हिङ्गुसौवर्चलोपेतं चूर्णमग्निकरं परम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy