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धूपप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः (५८१५) यष्ट्यादिलेपः (३) | रसौत समान भाग ले कर सबको एकत्र मिला कर (शा. ध. । ख. ३ अ. ११)
पानीके साथ पीस लें। यष्टीन्दीवरमृद्वीकातैलाज्यक्षीरलेपनैः ।
__इसका नेत्रों के बाहर लेप करनेसे हर प्रकाइन्द्रतः शमं याति केशाः स्युः सघनाः दृढाः ॥ |
रको नेत्र-पीड़ा नष्ट होती है । मुलैठी, कमल और मुनक्का १-१ भाग ले
___ (५८१७) यष्टयादिलेपः (५) कर सबको एकत्र मिला कर अत्यन्त बारीक पीस
(वृ. मा. । शोथा. ) कर उसमें १-१ भाग तेल, घी और दूध मिला| यष्टीदुग्धतिलैलेपो नवतीतेन संयुतः । कर लेप करनेसे इन्द्रलुप्त नष्ट होता और केश घने | शोथमारुष्करं हन्ति वृन्तैः शालदलस्य वा ॥ तथा दृढ़ होते हैं।
मुलैठी और तिल समान भाग लेकर दोनोंको (५८१६) यष्टयादिलेपः (४) । एकत्र मिला कर दूधके साथ अत्यन्त बारीक
पीस लें। (व. से. । नेत्र रोगा.)
इसे नवनीत में मिला कर लेप करनेसे यष्टीगैरिकसिन्ध्रत्यदा:तायः समांशकैः। भिलावेकी सूजन नष्ट हो जाती है। जलपिष्टैबहिर्लेपः सर्वनेत्ररुजापहः ॥
शाल वृक्षके पत्तोंके डण्ठलोंका लेप करनेसे मुलैठी, गेरु, सेंधा नमक, दारुहल्दी और भी भिलावेकी सूजन नष्ट हो जाती है।
इति यकारादिलेपप्रकरणम्
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अथ यकारादिधूपप्रकरणम् (५८१८) यवादिधूपः (१) - कर स्राव और तीव्र वेदना युक्त वातज बणोंको ( वृ. यो. त. । १११.)
इसकी धूनी देनी चाहिये।
(५८१९) यवादिधूपः (२) वाताभिभूतान्सास्रावान्धूपयेदुग्रवेदनान् ।
(वैद्यामृत.) यवाज्यभूर्जमदनश्रीवेष्टकमुराहयैः ॥
यवसर्पपरकशिवायचाजतुनिम्बाज्यभवं प्रधृपनम् जौ, भोजपत्र, मैनफल, श्रीवेष्ट, और देवदारु | ज्वरनाशकरं परं स्मृतं विविधोपायकरैश्चिसमान भाग ले कर चूर्ण बनावें । इसे धीमें मिला |
कित्सकैः॥
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