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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[मकारादि
(५१००) मधुपिप्पलीयोगः (१) क्षतज खांसी और रक्त पित्त तथा विशेषतः राज(भै. र. । ज्वरा.)
यक्ष्माका नाश होता है। क्षौद्रोपकुल्यासंयोगः श्वासकासज्वरापहः।। (मात्रा-६ माशे।) प्लीहानं हन्ति हिक्काञ्च बालानाश्चापि शस्यते॥ (५१०३) मधुयष्टियोगः
पीपलके चूर्णको शहदमें मिलाकर चाटनेसे (ग. नि. । पाण्डु. अ. ७) श्वास, खांसी, ज्वर, तिल्ली और हिचकीका नाश पाण्डुरोगहरं लिह्याच्चूर्ण क्षौद्रविमिश्रितम् । होता है।
यष्टयाहस्य प्रयत्नेन तत्काथं वा पिबेन्नरः ।। यह प्रयोग बच्चेांके लिये भी हितकारी है। मुलैठोके चूर्णको शहदमें मिलाकर चाटनेसे (मात्रा १-१॥ माशा।)
अथवा मुलैठीका काथ पीनेसे पाण्डुका नाश (५१०१) मधुपिप्पलीयोगः(२) होता है।
(वृ. नि. र.; यो. र. अम्लपित्ता.) (मात्रा-६ माशे ।) पिप्पलीमधुसंयुक्ता नाशयेदम्लपित्तकम् ।
(५१०४) मधुवचायोगः जम्बीरस्वरसः पीतः सायं हन्त्यम्लपित्तकम् ॥ (यो. र. । अपस्मारा.)
पीपलके चूर्ण को शहद में मिलाकर चाटनेसे यः खादेक्षीरभक्ताशी माक्षिकेण वचारजः । अथवा सायङ्कालके समय जम्बीरीका स्वरस पीनेसे ! अपस्मार महाघोर सुचिरोत्थं जयेद ध्रुवम् ॥ अम्लपित्त नष्ट होता है।
बचका चूर्ण शहदमें मिलाकर सेवन करने
और दूध भातका आहार करनेसे पुराना घोर अप(चूर्णकी मात्रा-१-१॥ माशा।)
स्मार (मिरगी रोग) भी अवश्य नष्ट हो जाता है । (५१०२) मधुयष्टिकादिचूर्णम् ।
(मात्रा-१ माशा) (हा. सं. । स्था. ३ अ. १२)
नोट--बचका चूर्ण अधिक मात्रामें लेनेसे मधुष्टिकया लाक्षा शताहा कर्कटाद्वयम् । वमन हो जाती है। द्राक्षा शतावरी चैव द्विगुणा वंशरोचना ॥ (५१०५) मधूकादिचूर्णम् (१) सबैः सिता समा योज्या युक्तं च मधुसर्पिषा । (ग. नि. । ज्वरा. १) क्षतकासे रक्तपित्ते राजक्षये विशेषतः ॥
मधूकमथ हीबेरमुत्पलानि मधूलिकाम् ॥ __ मुठो, लाख, सौंफ, काकड़ासिंगी, मुनक्का, लोदवा चूर्णानि मधुना सर्पिपा वा जयेद्वमिम् । और शतावर १-१ भाग, बंसलोचन १२ भाग कफप्रसेकामुक्पित्तहिक्कावासांश्च दारुणान् ॥ और खांड १८ भाग लेकर चूर्ण बनावें । महुवा, सुगन्धबाला, नीलोत्पल और मुलेठी
इसे शहद और घीके साथ सेवन करनेसे | समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
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