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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चूर्णप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः ३९१ (५७६३) यवान्यादिचूर्णम् (५) (५७६५) यवान्यादिचूर्णम् (७) (यो. चि. म. । अ. २) (यो. र. । गुल्म. ; वृ. नि. र. । गुल्म. ; यवानी पिप्पलीमूलं चातुर्जातकनागरैः । वं. से. । गुल्म.) मरीचेन्द्रयवाजाजीधान्यसौवर्चलैः समम् ॥ यवानी चूर्णितां तक्रे बिडेन लवणीकृताम् । वृक्षाम्लधातुकीकृष्णाबिल्वदाडिमदीप्यकैः। श्लेष्मगुल्मे पिबेद्वातमूत्रवर्धेनुलोमनीम् ॥ त्रिगुणैः षड्गुणैः सिद्धैः कपित्याष्टगुणैः स्मृताः। तक्रमें स्वाद योग्य बिड लवण मिला कर चूर्णमतीसारग्रहणीक्षयगुल्मगलामयान् ।। उसके साथ अजवायनका चूर्ण पीनेसे कफज गुल्म कासश्वासाग्निमन्दार्शःपीनसारोचकान् जयेत् ॥ नष्ट होता तथा वायु मूत्र और मल स्वमार्ग में प्रवृत्त हो जाते हैं। अजवायन, पीपलामूल, दालचीनी, तेजपात, | (५७६६) यष्टीमधुकयोगः इलायची, नागकेसर, सांठ, काली मिर्च, इन्द्रजौ, (ग. नि. । वाजीकरण.) जीरा, धनिया और सञ्चल (काला नमक ) १-१ | कर्ष मधकचूर्णस्य घृतक्षौद्रसमन्वितम् । भाग; तिन्तडीक, धायके फूल, पीपल, बेलगिरी, | सागर | पयोनुपानं यो लिह्यान्नित्यवेगः स ना भवेत् ॥ अनारदाना और चीता ३-३ भाग तथा गुड़ ६ । १। तोला मुलैठीके चूर्णको घी और शहदमें भाग और कैथका गूदा ८ भाग लेकर यथा विधि मिला कर चाटनेसे कामाग्नि अत्यन्त प्रज्वलित हो चूर्ण बनावें । जाती है। यह चूर्ण अतिसार, ग्रहणी, क्षय, गुल्म, गल अनुपान-दूध रोग, कास, श्वास, अग्निमांद्य, अर्श, पोनस और (घी १ तोला । शहद २ तोले । ) अरुचिको नष्ट करता है। (५७६७) यष्टयादिचूर्णम् (१) (मात्रा-३-४ माशे । अनुपान उष्ण जल ।) (यो. त. । त. २९) (५७६४) यवान्यादिचूर्णम् (६) यष्टया वा माक्षिकेणावलीढं (वृ. नि. र. । बाल.) ___ कृष्णाचूर्ण शराढयं च किंवा । सर्पिः कोष्णं क्षीरमुष्णं रसो वा यवानीजीरकं व्योषं कुटजं विश्वभेषजम् । हन्यादिक्षोः पानतः पञ्च हिक्काः ।। एतन्मधुयुतं पीतं बालानां ग्रहणों जयेत् ।। (१) मुलैठीके चूर्णको शहदमें मिलाकर चाअजवायन, जीरा, सेठि, मिर्च, पीपल, इन्द्रजौ टनेसे या (२) पीपल के चूर्ण में समान भाग मिसरी और सोंठ समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । मिला कर सेवन करनेसे या (३) मन्दोष्ण धी इसे शहदमें मिलाकर पिलानेसे बालकोंकी- पीनेसे अथवा (४) उष्ण दूध या (५) ईखका संग्रहणी नष्ट होती है। | रस पीनेसे पांच प्रकारकी हिचकी नष्ट होती है। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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