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चूर्णप्रकरणम्]
चतुर्थों भागः
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जवाखार और अजवायन समान भाग लेकर | (५७५७) यवानीखाण्डवचूर्णम् चूर्ण बनावें ।
(यमानिषाडवः) इसे उष्ण जलके साथ सेवन करनेसे सात (यो. र. : वृ. मा. ; भै. र. ; र. र. ; च. द.। दिनमें पुराना गुल्म और वातज शूल अवश्य नष्ट
अरोचका.; हारीत संहिता । स्था. ३ अ. ६; हो जाता है।
वृ. यो. त. । त. ७६; वृ. यो. त. । त. ( मात्रा-१-१॥ माशा ।)
८३; चरक सं । चि. स्था. ६. अ. ८ ) (५७५५) यवादिचूर्णम् | यवानी तित्तिडीकं च नागरं चाम्लवेतसम् ।
(रा. मा. । राजयक्ष्मा.) दाडिमं बदरं साम्लं कार्षिकाण्युपकल्पयेत् ॥ खादन्ति ये सयवनागबलातुरङ्ग
धान्यसौवर्चलाजाजीवराङ्ग चाधकार्षिकम् । गन्धांस्तिलान् गुडविमिश्रितमाषयुक्तान् । पिप्पलीनां शतं चैकं द्वे शते मरिचस्य च ।। पीत्वा पयोऽपि नचिरेण भवन्ति वन्य- | शर्करायाश्च चत्वारि पलान्येकत्र चूर्णयेत् । मातङ्गभङ्गपटवः स्वबलातिरेकात् ॥ यवानीखाण्डवकाख्यं तु चूर्णमेतदरोचकम् ।।
जौ, नागबला, असगन्ध, तिल, गुड और हन्त्येव प्रातरेतत्तु स्थापितं च मुखे मुहुः। उड़द समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
जिहाविशोधनं हृद्यं दीपनं भक्तरोचकम् ।। इसे दूधके साथ सेवन करनेसे शरीर बहुत
हृत्पीडापार्श्वशूलघ्नं विवन्धानाहनाशनम् । शोब हृष्ट पुष्ट और अत्यधिक बलशाली हो
कासश्वासहरं ग्राहि ग्रहण्यशैविकारनुत् ॥ जाता है।
अजवायन, तिन्तडीक, सोंठ, अम्लबेत, अनार(५७५६) यवानिकायुङ्कलनम्
दाना और खट्टे बेर ११-१। तोला; धनिया', सञ्चल
( काला नमक ), जीरा और दारचीनी आधा (वृ. नि. र. । सन्निपात. ; वृ. यो. त.। त. ५९)
आधा कर्ष (प्रत्येक ७॥ माशे); पीपल १०० यवानिका वचा शुण्ठा पिप्पली कारवी तथा। नग; काली मिर्च २०० नग, और खांड २० एतैरुद्धूलनं श्रेष्ठं त्रिदोषोत्थे ज्वरे नृणाम् ॥ | तोले लेकर यथा विधि चूर्ण बनावें। अजवायन, बच, सोंठ, पीपल और कलौंजी
प्रातः काल बार बार यह चूर्ण मुखमें धारण समान भाग लेकर बारीक चूर्ण बनावें ।
करनेसे अरुचि अवश्य नष्ट हो जाती है । इसकी मालिशसे सन्निपात ज्वरमें लाभ
____ इसके अतिरिक्त यह चूर्ण जिह्वाको शुद्ध होता है।
करता है तथा हृद्य, और दीपन है एवं हृत्पीडा, ( जब पसीना अधिक आने लगता है तो इसकी मालिशसे रुक जाता है । )
१-हारीत संहितामें धनियेका अभाव है।
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