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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २८० www.kobatirth.org भारत-2 - भैषज्य रत्नाकरः [ मकारादि आवश्यकतानुसार इसे सूंघना, इसका लेप न्यात् । और धूम्रपान करना चाहिये । (५७१७) मेघनादमूलबन्धनम् (वै. जी. | विलास १ ) क्षणमपि चलतां जहीहि मुग्धे शृणु वचनं मम तन्वि सावधाना | वसति शिरसि मेघनादमूले व्रजति तरां विषमो विलासदृष्टे || चौलाईकी जड़ो शिरपर बांधने से विषमज्वर नष्ट हो जाता है । भूतविषजन्त्वलक्ष्मी कार्मणमन्त्रान्यन्यरी न्ह दु:स्त्रमस्त्रीदोषानकालमरणाम्बु चौरभयम् ॥ धनधान्यकार्यसिद्धिः श्रीपुष्ट्यायुविवर्धनो धन्यः । मृतसञ्जीवन एष प्रागमृताद्ब्रह्मणा विहितः ॥ स्पृक्का (असबरग), केवटी मोथा, धुणेर, गोपीचन्दन, छारछरीला, गोरोचन, तगर, ध्यामक (गन्ध तृग), केसर, जटामांसी, तुलसीकी मञ्जरी, इलायची, हरताल, पंवाड़के बीज, बड़ी कटेली, सिरसके फूल, श्रीष्ट ( श्रीवास ), पद्मचारटी ( स्थल पद्म ), इन्द्रायणकी जड़, देवदारु, कमल केसर, सावरलोध, मनसिल, रेणुका, चमेलीके फूलोंका रस, आकके फूलोंका रस, हल्दी, दारूहल्दी, हींग, पीपल, लाख, सुगन्ध बाला, मुद्गपर्णी, चन्दन, महुवे फूल, मैनफल, संभालू, अमलतास, पठानी लोध, चिरचिटा, फूलप्रियंगु, नाकुली, ( नाई ) और बायबिडंग | पुष्य नक्षत्र में ये सम्पूर्ण चीजें समान भाग ले कर अत्यन्त महीन पीस कर गोलियां बनावें । ( और छाया में सुखाकर सुरक्षित रक्खें । ) यह अगद समस्त प्रकारके विषोंको नष्ट करता है । इसके अतिरिक्त यह ज्वर, भूत, कृमि ( रोग जीवाणु ), विपरीत मन्त्रोंके दुष्ट प्रभाव, अलक्ष्मी, शत्रु, अग्नि, अशनि, दुःस्वप्न, स्त्री दोष, अकाल मृत्यु, जल भय और चोरभय को भी दूर करता है 1 इसके प्रभाव से धन धान्य, कार्य सिद्धि, श्री, पुष्टि और आयुकी वृद्धि होती है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५७१८) मेघनादमूलयोगः ( वै. म. र. । पटल १६ ) मेघनाद शिफासमानतडागभुक्तियुतं पयः । सेचितं च निहन्ति तोदमसह्य मक्षिभवं नृणाम् ॥ मेघनाद ( चौलाई) की जड़को दूधमें पीसकर उसमें शुक्ति (सीप) घिसकर आंखमें डालने से असा नेत्र पीड़ा भी शान्त हो जाती है । (५७१९) मोचरससिद्धक्षीरम् (ग. नि. । २. पि. ८ ) विशेषतो विपथसंप्रवृत्ते पयो हितं मोचरसेन सिद्धम । araशुङ्गव ह्रीवेरनीलोत्पलनागरैर्वा ॥ १ तोला मोचरसको कूटकर १६ तोले दूधमें मिलावें और उसमें ६४ तोले पानी मिला कर मन्दाग्नि पर पकायें । जब सब पानी जल जाय तो दूधको छान लें। यह दूध मलमार्ग से निकलने वाले रक्त में विशेष उपयोगी है । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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