________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२७८ भारत-भैषज्य रत्नाकरः
[मकारादि (५७०७) मुखधावनयोगः | अतिसरणं बहुवेगं दुर्वारं धारयत्याशु ॥
(वृ. नि. र. । अरुचि.) अहिफेनातियोगेन नातिसारो निवर्तते । अजाजी मरिचं कुष्ठं बिडं सौवर्चलं तथा। किन्त्वस्य बहुभिर्योगैर्मामृतो मृत एव सः॥ मधुकं शर्करा तैलं वातिके मुखधावनम् ॥
१ रत्ती अफीमको बकरीके दूधके साथ ___जीरा, काली मिर्च, कूठ, बिडलवण, सञ्चल |
देनेसे तीव्र वेग वाला भयङ्कर अतिसार भी रुक (काला नमक), मुलैठी और खांड समान भाग ले
जाता है। कर, चूर्ण बनाकर उसमें तेल मिलाकर उससे सुख स्वच्छ करनेसे वातज अरुचि नष्ट होती है।
अफीम अधिक मात्रामें सेवन न करानी
चाहिये क्यों कि इससे अतिसार बन्द नहीं होता (५७०८) मुशल्यादियोगः (नपुंसका मृता. । त. ३; यो. र. । वाजीक.)
बल्कि हानि ही होती है । ( थोड़ी मात्रामें देनेसे
ही लाभ होता है।) मुसलिकोकिलगोक्षुरचूर्णकं
शशिविलोचनराममितं पचेत् । (५७१०) मुस्तायुदर्तनम् पयसि प्रातरिदं यदि कोष्णके (वा. भ. । चि. अ. १९; ग. नि. । कुष्ठा. २६)
मुसितया खलु टङ्ककषट्कया । मुस्तामृतासङ्गकटङ्कटेरी त्रिगुणसप्तदिनं परिभक्षय
कासीसकम्पिल्लककुष्ठरोधाः। छतवया अपि कांक्षति कामिनीम् ।
गन्धोपलः सर्जरसो विडङ्गं किमिह चित्रमुदित्सरयौवनः
मनःशिलाले करवीरकत्वक् ॥ शशिमुखीं शयनान्न जहाति सः॥
तैलाक्तगात्रस्य कृतानि चूर्णाकाली मूसली १ भाग, तालमखाना २ भाग
न्येतानि दद्यादवचूर्णनार्थम् । और गोखरु तीन भाग लेकर सबको कूट छानकर दूधमें पकावें और उसमें २॥ तोले मिश्री मिलाकर
ददू सकण्डूः किटिभानि पामा मन्दोष्ण करके प्रातःकाल पियें।
विचचिका चैव तथैति शान्तिम् ॥ इसे २१ दिन तक सेवन करनेसे १०० नागरमोथा, नीलाथोथा, हल्दी, कसीस, वर्षके वृद्ध पुरुषको भी स्त्री समागमकी शक्ति प्राप्त
कमीला, कूठ, लोध, गन्धक, राल, बायबिडंग, मनहो जाती है।
सिल, हरताल और कनेरकी छाल समान भाग ले ( चूर्णकी मात्रा-६ माशे।) कर महीन चूर्ण बनावें । (५७०९)मुष्टियोगः
___ शरीर पर तैलकी मालिश करके यह चूर्ण ( भै. र. । ज्वरातिसा.) मलनेसे दाद, खाज, किटिभ, पामा और विचर्चिका गुनामितमहिफेनं छगलीदुग्धेन युआनम् । आदि रोग नष्ट हो जाते हैं ।
For Private And Personal Use Only