________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
२७४
www.kobatirth.org
भारत - भैषज्य रत्नाकरः
एकत्र पीस कर बछिया के मूत्रमें घोट कर सुखा और फिर उसे कपड़ मिट्टीकी हुई आतशी शीशी में भर दें तथा उसके मुखमें एक तिरछी ( कुहनी बाली ) नली लगा कर उसका दूसरा सिरा एक अन्य शीशीके मुखमें लगा दें एवं औषधवाली शीशीको चूल्हे पर रक्खें और उसके नीचे अग्नि जावें तथा दूसरी शीशीको पानी से भरे हुवे पात्र में रक्खें; पानी शीशीके गले तक रहना चाहिये ।
इस क्रिया औषध वाले पात्रसे वाष्प निकल कर खाली शीशी में जायगी और द्रवरूप हो कर एकत्रित होती रहेगी । यह ध्यान रखना चाहिये कि वाष्प शीशीके बाहर इधर उधर न जाने पावे ।
"
जब भाप उठनी बन्द हो जाय तो अग्नि बन्द कर दें। और “ द्राव (अर्क ) ” को शीशीमें भर कर सुरक्षित रक्खें ।
( यह एक प्रकारका तेजाब है अतः ध्यान रखना चाहिये कि त्वचा और आंख इत्यादि को नलगे । इसे पानी या किसी अन्य औषध में मिलाए 1 बिना कदापि न पीना चाहिये । )
इसे लवङ्गके चूर्ण या ताम्र भस्ममें मिलाकर घोट कर गोलियां बना लेनी चाहियें ।
इसे खाने से लोहादि रोग और लगानेसे श्वित्र तथा दाद नष्ट होता है ।
इसे लगाने से तीव्र दाह होती है, उस पर दहीका लेप करने से वह शान्त हो जाती है ।
पानीमें डालकर या उपरोक्त लेखानुसार गोलियां बनाकर सेवन करना चाहिये | ) १ रत्ती ( १ बूंद ) ।
मात्रा
[ मकारादि
(५६९८) महाद्रावकम् (२) ( धन्व. । उदर; भै. र. । उदरा. ) वृषचित्रमपामार्ग चिचा कूष्माण्ड नाडिका । स्नुही तालस्य पुष्पञ्च वर्षाभूर्वेतसं तथा ॥ एतेषां क्षारमाहृत्य लिम्पाकस्वरसेन च । क्षालयित्वा क्षारतोयं वस्त्रपूतञ्च कारयेत् ॥ चण्डापेन संशोष्य ग्राह्यं तद् द्रवणोचितम् । एतस्य द्विपलं ग्राह्यं यवक्षारपलद्वयम् ॥ स्फटिकारिपलञ्चैव नरसारपलन्तथा । पलार्द्ध सैन्धवं ग्राह्यं टङ्कणं तोलकद्वयम् ॥ काशीशं तोलकञ्चैव मुद्राशङ्खश्च तोलकम् । दारुमोचं कर्षकञ्च तोलं समुद्रफेनकम || सर्वमेकत्र सञ्चूर्ण्य वकयन्त्रेण साधयेत् । महाद्रावकमेतद्धि योज्यञ्च रसजारणे ॥ हन्ति गुल्मादिकान् रोगान् यकृत्प्लीहोदरानि च
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वासा, चीता, अपामार्ग ( चिरचिटा ), इमलीकी छाल, पेठेकी बेलकी डंडी (डंटल ), सेंड (थोहर), तालके पुष्प, पुनर्नवा और बेत; इनके क्षार समान भाग ले कर सबको एकत्र मिला कर नीबू के स्वरसमें घोल कर छान लें और फिर उस | जलको प्रचण्ड धूप में शुष्क करें ।
अब यह क्षार १० तोले, यवक्षार १० तोले, फटकी ५ तोले, नौसादर ५ तोले, सेंधा नमक २॥ तोले, सुहागा १| तोला, कसीस ७॥ माशे, मुर्दाशंख ७ ॥ माशे, शुद्ध संखिया १| तोला और समुद्रफेन ७॥ माशे लेकर सबको एकत्र मिलाकर कांचके बकयन्त्र ( भपके ) से ( पूर्व प्रयोग में कथित विधि के अनुसार ) अर्क खींचे ।
यह द्रावक ( अर्क ) पारद जारण में प्रयुक्त
For Private And Personal Use Only