SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 276
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिश्रप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः २७२ बकरीके दूधमें शहद डाल कर पीनेसे, अथवा (५६९५) महाऽगदः सफेद कोयल या कबूतरकी विष्ठाको चावलोंके (वं. से ; वृ. मा. । विषा. ; ग. नि. सर्पविष. पानीमें पीस कर पीनेसे ३ दिनमें गर्भिणीका रक्त- ३., आ. वे. वि. । चि. अ. ८२) स्राव बन्द हो जाता है। त्रिवृद्विशल्या मधुकं हरिद्रे (५६९२) मधुसपिरादियोगः माञ्जिष्ठवर्गों लवणं च सर्वम् । कटुत्रिकं चैव विचूर्णितानि ( वृ. मा. । ज्वरा.) __ शृङ्गे निदध्यान्मधुसंयुतानि ॥ मधु सर्पिः सिता कृष्णा भृतक्षीरविलोडिता । एषोऽगदो हन्त्युपयुज्यमानः विषमज्वरहृद्रोगक्षतकासज्वरापहा ॥ पानाञ्जनाभ्यअननस्ययोगैः। शहद, घी, मिश्री (२-२ तोला) और अवार्यवीर्यो विषवेगहन्ता पीपलका चूर्ण (१॥ माशा) लेकर सबको पके हुवे महागदो नाम महाप्रभावः ॥ दूधमें मिला कर सेवन करनेसे विषमज्वर, हृद्रोग निसोत, गिलोय, मुलैठी, हल्दी, दारुहल्दी, और क्षतज कासका नाश होता है। मजीठ, सेंधा नमक, सोंठ, मिर्च और पीपलका चूर्ण समान भाग ले कर सबको शहद में मिलाकर (५६९३) मरिचशोधनम् सींगमें भर कर रख दें। (यो. र. । प्रथम भाग.) । यह अगद सादिके भयंकर विषको भी नष्ट मरीचं चाम्लतक्रेण भावितं घटिकात्रयम । | कर देता है । अत्यन्त प्रभावशाली है। मरीचं निस्तुषं कृत्वा शुद्धं भवति निश्चितम् ॥ इसे पान, अञ्जन, अभ्यंग और नस्य द्वारो प्रयुक्त करना चाहिये । काली मिर्चीको ३ घड़ी तक खट्टे तक्रमें | । (५६९६) महागन्धहस्तीनामाऽगदः भिगो कर छील लेनेसे वे शुद्ध हो जाती हैं। (च. सं. । चि. अ. २३) (५६९४) मसूरसक्तुयोगः पत्रागुरुमुस्तैला निर्यासाः पश्च चन्दनं स्पृक्का । वनलदोत्पलबालकहरेणुकोशीरव्याघ्रनखाः॥ (व. यो. त. । त. ८३ ) सुरदारुकनककुडमध्यामककुष्ठप्रियङ्गवस्तगरम्। मसूरसक्तवः क्षौद्रं मर्दितं दाडिमाम्भसा। पञ्चाङ्गानि शिरीषाद्वयोषालमनःशिलाजाज्यः।। पीता निवारयन्त्याशुच्छदि दोषत्रयोद्भवाम् ॥ श्वेताफटभी करञ्जो रक्षोनः सिन्धुवारिका ___ मसूरके सत्तूमें शहद और अनारका रस मिला रजनी। कर पिलानेसे त्रिदोषज छदि शीघ्र ही नष्ट हो सुरसरसाधनगैरिकमाश्रिष्ठानिम्बपत्रनिर्यासाः॥ जाती है। १-रक्तां नरेन्द्री लवणञ्च वर्गः For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy