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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ मकारादि निसोत, चिरायता, पाठा, सुगन्धबाला, कुटकी, (५०८३) मूत्रसंग्रहणीयो दशको मुलैठी और पीपलामूल । सब चीजें समान भाग महाकषायः लेकर काथ बनावें। (च. सं. । सू. अ. ४) इसे “ मुस्तादिगण " अथवा " मुस्तादि जम्ब्बाम्रप्लक्षवटकपीतनोदुम्बराश्वत्थअष्टादशाङ्ग काथ " कहते हैं। भल्लातकाश्मन्तकसोमवल्का इति दशेमानि • यह पित्तप्रधान सन्निपात, मन्यास्तम्भ, उरः | मूत्रसंग्रहणीयानि भवन्ति । क्षत, उरोग्रह, पार्वग्रह और शिरोमहमें हितकर है। जामन, आम, पिलखन, वट (बड), अम्बाडा (५०८१) मूत्रविरजनीयो दशको गूलर, पीपल वृक्ष, भिलावा, अम्लोट और खैर । महाकषायः। इनका कषाय मूत्रकी अधिकताको कम (च. सं. । सू. अ. ४) करता है। पद्मोत्पलनलिनकुमुदसौगन्धिकपुण्डरीक [५०८४] मूर्वादिकाथः शतपत्रमधुकप्रियङ्गधातकीपुष्पाणीतिदशेमानि (च. सं. । चि. अ. २७ ऊरुस्तम्भ.) मूत्रविरजनीयानि भवन्ति । मूर्वामतिवियां कुष्ठं चित्रकं कटुरोहिणीम् । सफेद कमल, नोल कमल, लाल कमल, कुमुद | पूर्ववद्वा पिबेत्तोये रात्रिस्थितमथापि वा ॥ (कमलभेद), सौगन्धिक, पुण्डरीक, शतपत्र, मुलैठी, ___मूर्या, अतीस, कूठ, चीता और कुटकी के फूलप्रियङ्गु और धायके फूल। काथ अथवा शीतकषायमें शहद मिलाकर पीनेसे इनका कषाय पीनेसे मूत्र दोषरहित हो जाता है। ऊरुस्तम्भ रोग नष्ट होता है। (५०८५) मूपिकर्णीमूलयोगः [५०८२] मूत्रविरेचनीयो दशको (ग. नि. । वन्ध्या . ५) __महाकषायः गर्भाभावकृतान् दोषानेका एव हि नाशयेत् । (च, सं. । सू. अ. ४) योनिमध्यस्थिता स्त्रीणां मूपिकर्णीशिफा वृक्षादनीश्वदंष्ट्रावसुकवशिरपाषाणभेददर्भ ध्रुवम् ॥ कुशकाशगुन्द्रेत्कटमूलानीति दशेमानिमूत्रवि- मूषाकर्णी की जड़को योनिमें रखनेसे रेचनीयानि भवन्ति । वन्ध्यत्व ( बांझपना ) अवश्य नष्ट हो जाता है। बिदारीकन्द, गोखरु, वसुक (अगस्ती), हुल- (५०८६) मृणालादिकाथः (१) हुल, पखानभेद, दाभ, कुश, कांस, गुन्द्रपटेर और (ग. नि. । धरा.; रा. मा. । ज्वरा. २०) इत्कट । इनकी जड़ लेकर कषाय बनाकर प्रयुक्त मृणालधात्रीफलचन्दनैयः करनेसे मूत्र खुलकर होता है । __ मृतं गुडूचीघनपर्पटेश्च। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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