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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसमकरणम् ] चतुर्थो भागः २५५ इसमें से १ माशा रसमें हींग, सोंठ, मिर्च, चीतामूलके काथमें घोट कर आधी आधी रत्तीकी पीपल और कपूरका चूर्ण मिलाकर अदरकके रसके | गोलियां बनावें ।। साथ सेवन करनेसे मृत्प्रायः सन्निपात रोगी भी इनमेंसे १-१ गोली हींग, सोंठ, मिर्च, स्वस्थ हो जाता है। पीपल और कपूरके चूर्ण तथा अदरकके रसके (मात्रा रोगीकी अवस्थानुसार निश्चित करनी | साथ खिलानेसे मृत्प्रायः सन्निपात रोगी भी स्वस्थ चाहिये । ) | हो जाता है। (५६५३) मृतोत्थापनरसः (३) (५६५४) मृत्युञ्जयरसः (१) ( भै. र. ; र. रा. सु. । ज्वरा.) (महारसः) शुद्धमूर्त द्विधागन्धं शिला च विषहिङ्गुलम् । (र. र. स. । अ. १२; र. रा. सु. । ज्वरा.) मृतकान्ताभ्रताम्रायः तालकं मासिकं समम् ॥ ताप्यतालकजेपालवत्सनाभमनःशिलाः । अम्लवेतसजम्बीरचाङ्गेरीणां रसेन च । ताम्रगन्धकमूतं च मुसलीरसमर्दितः॥ निर्गुण्डीहस्तिशुण्डयोश्च द्रवैर्मध दिनत्रयम् ॥ मृत्युञ्जय इति ख्यातः कुक्कुटीपुटपाचितः । रुद्ध्वा तु भूधरे पाच्यो दिनान्ते तं समुद्धरेत्। वल्लद्वयं प्रयुञ्जीत यथेष्टं दधिभोजनम् ॥ चित्रकस्य कषायेण मर्दयेत्महरद्वयम् ।। नवज्वरं सन्निपातं हन्यादेष महारसः । गुञ्जा’ च प्रदातव्यं हिजुन्योषाकद्रवैः । ___ स्वर्णमाक्षिक भस्म, शुद्ध हरताल, शुद्ध सकर्पूरानुपानं स्यान्मृतस्योत्थापने रसे ॥ जमालगोटा, शुद्ध बछनाग ( मीठा विष ), शुद्ध पीडितं सभिपातेन गतं वापि यमालयम् ।। मनसिल, ताम्र भस्म, शुद्ध पारद और गन्धक समान तत्क्षणात् जीवयत्येष पथ्यं क्षोरैः प्रयोजयेत् ॥ यानयत् " भाग लेकर प्रथम पारे गंधककी कजली बनावें शुद्ध पारद १ भाग, शुद्ध गन्धक २ भाग में अन्य औषधे मिला कर सबको और शुद्ध मनसिल, शुद्ध बछनाग ( मोठा विष ), | दिन मूसलीके रसमें घोटकर, शरावसम्पुट में बन्द शुद्ध हिंगुल, कान्तलोह भस्म, अभ्रक भस्म, ताम्र करके कुक्कुटपुटमें पकावे । भस्म, लोह भस्म, शुद्ध हरताल तथा स्वर्णमाक्षिकभस्म १-१ भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी इसे ६ रत्ती मात्रानुसार खिलानेसे नवीन कजली बनावें और फिर उसमें अन्य औषधे ज्वर और सन्निपात नष्ट हो जाता है । (व्यवहामिलाकर सबको अम्लबेत, जम्बीरी, चाङ्गेरी (चूका), रिक मात्रा-२ रत्ती ।) निर्गुण्डी और हाथीसूंडीके रसमें ३-३ दिन घोट इस पर यथेष्ट दधि खिलानी चाहिये । कर शराव-सम्पुट में बन्द करके भूधर यन्त्रमें १ मृत्युञ्जयरसः (२) दिनकी अग्नि दें और फिर उसके स्वांग शीतल | ( भै. र; र. सा. सं. ; र. चं. ; र. रा. सु. । हो जाने पर औषधको निकाल कर उसे २ पहर इत्यादि ) For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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