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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५४ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [मकारादि पीपल और शुद्ध बछनाग (मीठा विष) १-१ चूर्णकी ओषधियां-बायबिडंग, त्रिफला, भाग तथा शुद्ध हिंगुल २ भाग लेकर सबको चीता, और त्रिकटु ( सोंठ, मिर्च, पीपल) ५-५ एकत्र घोटकर १ दिन जम्बीरी नीबूके रसमें खरल | तोले । कर मूलीके बीजके समान गोलियां बनावें । शुभ मुहूर्तमें गुरु और सूर्यदेवकी पूजा करके इन्हें शीतल जलके साथ खिलानेसे ज्वराति- इसमेंसे १ माशा औषध नारियल के पानी या गोदुसार, हैजा और भयंकर सन्निपात नष्ट होता है। ग्धके साथ सेवन करें और फिर नित्य थोड़ी (५६५१) मृतोत्थापनरसः (१) | थोड़ी मात्रा बढ़ाते रहें। आठ माशेसे अधिक न (र. रे. स. । अ. १८) बढ़ावें । अभ्रं तानं तथा लोहं प्रत्येक मारितं पलम् । इसके सेवनसे हृदयशूल, पार्श्वशूल, आमसुसंस्कृतं सर्वमेतद्गृह्णीयात्कुशलो भिषक ॥ वात, कटिग्रह, गुल्मशूल, शिरशूल, यकृत् , प्लीहा, आज्ये पलद्वादशके दुग्वे तत्स्वरसंख्यके । अग्निमांद्य, क्षय, कुष्ठ, कास, श्वास, विचर्चिका, पक्त्वा तत्र क्षिपेच्चूर्ण सुपूतं घनतन्तुना ॥ अश्मरी और मूत्रकृच्छ्रका नाश होता है। विडङ्गत्रिफलावह्नित्रिकटूनां तथैव च ।। पिष्ट्वा पलोन्मितानेतान्यथासंमिश्रतां नयेत ॥ (५६५२) मृतोत्थापनरसः (२) ततः पिष्ट्वा शुभे भाण्डे स्थापयेत्तद्विचक्षणः ।। (र. रा. सु. । सन्निपाता.) आत्मनः शोभने चाहि पूजयित्वा गुरुं रविम्॥ विषं च दरदं तुल्यं मईयेद्वासरद्वयम् । घृतेन मधुना मद्यैः पाययेन्माषकादिकम् ।। अम्लवेतसजम्बीरचाङ्गेरीणां रसेन च ॥ अष्टौ माषान्क्रमेणैव वर्धयेत्तत्समाहितः॥ | निर्गुण्डीहस्तिशुण्डयाश्च एवं घमें विपाचयेत् । अनुपानं च दुग्धेन नारिकेरोदकेन वा। चित्रकस्य कषायेण द्वियामं मईयेत्ततः ॥ हृच्छूलं पार्श्वशूलं च आमवातं कटिग्रहम् ॥ | माषमात्रप्रदातव्यो हिङ्गुव्योषाकदवैः । गुल्मशूलं शिरःशूलं यकृत्प्लीहानमेव च ।। | किश्चित्कर्पूरसंयुक्तो मृतोत्थापनको रसः ॥ अग्निमांद्य क्षयं कुष्ठं कासं श्वासं विचर्चिकाम् ॥ पीडितः सन्निपातेन मृतो याति यमालयम् । अश्मरी मूत्रकृच्छं च योगेनानेन साधयेत् ॥ प्रत्येति सत्क्षणादेव रसस्यास्य प्रभावतः ॥ ____ अभ्रक भस्म, ताम्र भस्म और लोह भस्म शुद्ध बछनाग ( मीठा विष ) और हिंगुल ५-५ तोले तथा ६० तोले घी और ३५ तोले | समान भाग लेकर दोनोंको एकत्र करके २-२ दिन गोदुग्ध लेकर सबको एकत्र मिलाकर पकावें और अम्लबेत, जम्बीरी, चांगेरी ( चूका ), सम्भालु गाढ़ा होने पर उसमें निम्न लिखित औषधोंका और हाथीसुण्डीके रसमें घोटकर धूपमें सुखाकर अत्यन्त महीन कपड़छन चूर्ण मिलाकर सबको | २ पहर चित्रकके काथमें पका और फिर खरल अच्छी तरह घोटकर सुरक्षित रक्खें । | करके सुरक्षित रक्खें । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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