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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः २५१ प्रत्येकं कर्षमात्रं स्यात्कुट्टितं क्वाथयेज्जलैः। अनुपान-सोंठ, अतीस, नागरमोथा, देवचतुर्गुणं जलं दत्त्वा यावत्पादावशेषितम् ॥ दारु, पीपल, बच, अजवायन, सुगन्धबाला, अनेन त्रिदिनं भाव्यं पूर्वोक्तं मर्दितं रसम। धनिया, कुड़ेकी छाल, हरी, धायके फूल, इन्द्रजौ, रुद्धा तद्वालुकायन्त्रे क्षणं मृद्वग्निना पचेत् ॥ | बेलगिरी, पाठा और मोचरस समान भाग ले कर चूर्ण बनावें। मृतसञ्जीवनो नाम चास्य गुाचतुष्टयम् । दातव्यमनुपानेन चासाध्यमपि साधयेत् ॥ उपरोक्त रस खा कर यह चूर्ण (१-१॥ षट्प्रकारमतीसारं साध्यासाध्यं जयेध्रुवम् ॥ माशा ) शहदमें मिलाकर चाटना चाहिये । नागरातिविषा मुस्तं देवदारु कणावचा। (५६४५) मृतसञ्जीवनो रसः (३) यमानी बालकं धान्यं कुटजत्वक हरीतकी ॥ ( भै. र. : र. का. धे. ; र. चं., र. म. । धातकीन्द्रयवौ बिल्वं पाठा मोचरसं समम् । ज्वरा.; र. रा. सु. । ज्व. ) चूर्णितं मधुना लेह्यमनुपानं सुखावहम् ॥ म्लेच्छस्य भागाश्चत्वारो जेपालस्य त्रयो मताः। शुद्ध पारद और गन्धक ४-४ भाग, शुद्ध द्वौ भागौ टङ्कणस्यैव भागैकममृतस्य च ॥ बछनाग (मीठा विष) १ भाग और अभ्रक भस्म तत्सर्वं मर्दयेत्सूक्ष्मं शुष्कं याम भिषग्यरः। ९ भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कजली बनावें शृङ्गवेराम्बुना देयो व्योषचित्रकसैन्धवैः ।। और फिर उसमें बछनाग तथा अभ्रक मिलाकर सबको १-१ पहर धतरे और साक्षीके रसमें गुनाद्वयमितस्तापं हरत्येष विनिश्चयः । घोटें और फिर धायके फूल, अतीस, नागरमोथा, घनसारेण युक्तेन चन्दनेन विलेपयेत् ॥ सोंठ, जीरा, सुगन्धवाला, अजवायन, धनिया, बेल विदध्यात्कांस्यपात्रे च सेचयेद्रोगिणं भिषक् । गिरी, पाठा, हर, पीपल, कुड़ेकी छाल, इन्द्रजौ, शाल्यन्नं तक्रसहितं भोजयेदिक्षुसंयुतम् ।। कैथ और कच्चा अनार ११-१। तोला लेकर सन्निपाते महाघोरे त्रिदोषे विषमज्वरे । सबको कूट कर आठ गुने पानीमें पकावें और जब आमवाते वातशूले गुल्मे प्लीहि जलोदरे ॥ चौथा भाग रह जाए तो छान लें, तदनन्तर इस शीतपूर्वे दाहपूर्व विषमे सततज्वरे । काथसे उक्त रसको ३ दिन खरल करके शराव- अग्निमांद्ये च वाते च प्रयोज्योऽयं रसेश्वरः॥ सम्पुटमें बन्द करें और उसे थोड़ी देर बालुका मृतसञ्जीवनं नाम ख्यातोऽयं रससागरे ॥ यन्त्रमें मन्दाग्नि पर पका लें। शुद्ध हिंगुल ४ भाग, शुद्ध जमालगोटा ३ इसमेंसे ४ रत्ती औषध उचित अनुपानके | भाग, सुहागेकी खील २ भाग और शुद्ध बछनाग साथ देनेसे छः प्रकारके असाध्य अतिसार भी नष्ट | (मीठा विष) १ भाग लेकर सबको १ पहर तक हो जाते हैं। अच्छी तरह खरल करके महीन चूर्ण बनावें । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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