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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[मकारादि
अथवा काली मिर्चके चूर्ण और घीके साथ सेवन । इसे शहद और घीमें चाटकर ऊपरसे पका करनेसे राजयक्ष्मा रोग नष्ट होता है । कर ठंडा किया हुवो दूध पीना और फिर पान मात्रा २ रत्ती।
खाना चाहिये। नोट-" राज मृगाङ्क रस" रकारादि रस
इसे १ मास तक सेवन करनेसे सैकड़ों प्रकरणमें और "स्वर्ण राज मृगाङ्क रस" सका
स्त्रियोंसे रमण करनेकी शक्ति प्राप्त होती तथा शरीर रादि रस प्रकरणमें देखिये ।
कामदेव-सदृश रूपवान हो जाता है। (५६४०) मृतकन्दर्पजीवनरसः
____ इसे दीर्घ काल तक सेवन करनेसे वृद्ध पुरुष (र. चं. | वाजीकरण.)
युवाके समान हो जाता है। इसके सेवनसे बलि
पलित-रहित १०० वर्षकी रोग रहित आयु प्राप्त रसभस्माभ्रक वङ्ग तीक्ष्णं कस्तूरिकाञ्चनम् ।
होती है। आकल्लकं लवङ्गं च दरदं जातिपत्रिका ॥
इसे यथोचित अनुपानके साथ अनेक रोगों में जातिफलं धृतबीजं सममेकत्र मर्दयेत् ।। ताम्बूलीस्वरसेनैव तथाऽऽकरसेन वै ॥
| प्रयुक्त कर सकते हैं। बल्लैकप्रमिता मात्रा लेहयेन्मधुसर्पिषा।
इस पर नित्य स्निग्धान्न सेवन करना और शृतशीतं पयः पीत्वा ताम्बूलं भक्षयेत्सधीः॥ तेल तथा खटाईका त्याग करना चाहिये । मासमात्रप्रयोगेन मृतकन्दर्पजीवनम् । | (५६४१) मृतजीवनरसः रमेद्रामाशतं नित्यं कामतुल्यो नरो भवेत् ॥
(र. र. स. । अ. १२) सतताभ्यासयोगेन वृद्धोऽपि तरुणायते ।।
| कुष्माण्डचूर्णतिलजैः प्रविशुद्धतालं जीवेद्वर्षशतं साग्रं वलीपलितवर्जितः ॥
. गाढं विमद्य सुषवीसलिलेन तुल्यम् । सर्वरोगानिहन्त्याशु नात्र कार्या विचारणा।।
। मूतेन हिङ्गुलभुवा सिकताख्ययन्त्रे तत्तद्रोगानुपानेन सर्वरोगेषु योजयेत् ॥
| गोलं विधाय परिवृत्तकपालमध्ये ।। स्निग्धान योजयन्नित्य तलाम्ल वजयत्सुधाः । पत्रेण तं दिनपतेश्च पिधाय रुध्वा
पारद भस्म, अभ्रक भस्म, बङ्ग भस्म, | सन्धि तयोर्गुडसुधाखटिकाशिवाभिः । तीक्ष्ण लोह भस्म, कस्तूरी, स्वर्ण भस्म, अकरकरा, वहौ पचेन्मृदनि पात्रशिरःस्थशालीलौंग, शुद्ध हिंगुल, जावत्री, जायफल और धतूरके | वैवयंमात्रमवधि प्रविधाय धीमान् ।। शुद्ध बीज, समान भाग लेकर सबको एकत्र |
वल्लं ततः सुरसमिश्रममुष्य दद्यामिला कर १-१ दिन पान और अदरकके रसमें
सर्पिः सिताकणमधृनि पयोऽनुपेयम् । घोटकर सुरक्षित रखें।
जेतुं ज्वरान्प्रविषमानिह वान्तिशान्त्यै मात्रा--३ रत्ती।
| मौलौ सुशीतलजलस्य ददीत धाराम् ॥
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