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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कषायकरणम् ] यह क्वाथ प्रबल वातपित्त - ज्वरको नष्ट करता है । चतुर्थो भागः क्वाथः सकृष्णाकृमिशत्रुकल्कः । मार्गद्वयेनापि चिरप्रवृत्तान् (५०६६) मुस्तादिकाथ : (२०) ( यो. र.; वृ. मा.; धन्व.; व. से. कृमि ; ग. निं. कृमि . ६ ) मुस्ताखुपर्णीफल शिग्रुदारु बालकं चन्दनं मुस्तं भूनिम्बं सदुरालभम् । उशीरं चन्दनं लोध्रं नागरं नीलमुत्पलम् || पाठा मुस्तं हरिद्रे द्वे पिप्पली कौटजं फलम् । (५०६५) मुस्तादिकाथः (१९) पडे (बृ. मा.; यो. र. विसर्पा ; वृ. नि. र. विसर्पा ; फलत्वचं वत्सकस्य शृङ्गवेरं घनं वचा ॥ ग. नि. विसर्पा ४० ) पादिका योगा पित्तातीसारनाशनाः ॥ मुस्तारिष्टपटलानां क्वाथः सर्वविसर्पनुत् । (१) नागरमोथा, इन्द्रजौ, चिरायता और रसौत । धात्री पटोलमुद्गानामथवा घृतसंयुतः ॥ (२) दारूहल्दी धमासा, बेलगिरी, सुगन्धबाला, और लाल चन्दन । नागरमोथा, नीमकी छाल और पटोलका क्वाथ पीने से अथवा आमला, पटोल और मूंगके क्वाथमें घी डालकर पीने से हर प्रकारका विसर्प होता है। कृमीनिहन्ति क्रमिजांश्च रोगान् ॥ नागरमोथा, मूषापर्णी ( चूहा कन्नी), हर्र, बहेड़ा, आमला, सहजनेकी छाल और देवदारु समानभाग लेकर क्वाथ बनावें । इसमें पीपल और बायबिड़ंगका चूर्ण मिलाकर पीनेसे दोनों मार्गों (मुख और गुदा) की ओर जाने वाले कृमि और उनसे उत्पन्न होने वाले रोग नष्ट हो जाते हैं। (५०६७) मुस्तादिकाथः (२१) (व. से. अतिसारा. ) तं वत्सकवीजानि भूनिम्बं सरसाञ्जनम् । दादुरालभा बिल्वं बालकं रक्तचन्दनम् ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९ (३) सुगन्धवाला, लाल चन्दन, नागरमोथा, चिरायता और धमासा । (४) खस, लाल चन्दन, लोध, सांठ और नीलोत्पल (५) पोठा, नागरमोथा, हल्दी, दारूहल्दी, पीपल और इन्द्रजौ । (६) इन्द्रजौ, कुड़ेकी छाल, सोंठ, नागरमोथा और वच । उपरोक्त ६ प्रयोगों में से किसीका भी क्वाथ बनाकर पिलाने से पित्तातीसार नष्ट होता है । (५०६८) मुस्तादिकाथः (२२) ( वृ. नि. र. वातपित्तज्वर. ) मुस्तादुरालभाशुण्डोक्वाथ एषां समांशतः । हन्ति श्लेष्मज्वरं तीव्रं निपीतः पथ्यभोजने ॥ नागरमोथा, धमासा और सोंठ समानभाग लेकर काथ बनावें । इसे पीने और पथ्य पालन करनेसे तीत्र कफजज्वर नष्ट होता है । For Private And Personal Use Only (५०६९) मुस्तादिकाथ : ( २३ ) ( वा. भ. चि. अ. २२ ) मुस्तद्राक्षाहरिद्राणां पिवेत्क्वायं कफोत्रणे । सक्षौद्रं त्रिफलाया वा गुडूचीं वा यथा तथा ॥
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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