________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रसप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः
२२७
महोदधिरसः (५) स्वाङ्गशीतलमाहृत्य गोलकं लेपनैः सह । (र. म. ; र. सा. सं. ; र. रा. सु. ; र. चं.।
विचूर्ण्य सप्तवारं हि विषतिन्दुफलोद्भवैः ।
| द्रवैरथाऽऽतपे शुष्कं क्षिपेद्रम्ये करण्डके । कास. ; र. रा. सु. । श्वासा. ; र. च. । अर्श.) ।
त्रिंशदंशेन वैक्रान्तभस्म तस्मिन्विनिक्षिपेत् ।। ___ 'गुण महोदधि रस' सं. १५६६ देखिये।
अयं हि नन्दीश्वरसम्पदिष्टो जिन ग्रन्थोंमें ' महोदधि ' नामसे लिखा है उनमें
रसो विशिष्टः खलु रोगहन्ता । प्रायः प्रथम पंक्तिमें वराङ्गकम् ( दालचीनी) के
निःशेषरोगेष्वहतप्रभावो स्थानमें वराटकम् ( कौड़ी भस्म ) लिखी है एवं
महोदयप्रत्ययसारनामा ॥ प्रायः सभी ग्रन्थोंमें " गन्धक लौहञ्चैव " पाठ है
हन्यात्सर्वगुदामयान्क्षयगदं कुष्ठं च मन्दाग्नितां
मामला अर्थात् महोदधि रस में १ भाग लोह भस्म भी शलाध्मानगदं कर्फ श्वसनतासन्मादापाती। डालनी चाहिये।
सर्वा वातरुजो महाज्वरगदानानाप्रकारांस्तथा महादधिवटी (बृहत् ) वातश्लेष्मभवं महामयचयं दुष्टग्रहण्यामयम् ।। ( र. सा. सं. । अजीर्णा.)
समान भोग पारद गन्धककी कज्जली १५ प्रयोग संख्या ५५९२ के समान है परन्तु
तोले, पारद भस्म ( रस सिन्दूर ), अभ्रक भस्म,
ताम्र भस्म और लोह भस्म ११-११ तोला; शुद्ध इसमें मरिचका अभाव है । दन्तीकी १४ भावना तथा विधारेकी ५ हैं । शेष प्रयोग समान है। .
हिंगुल ५ तोले, स्वर्ण माक्षिक भस्म १५ तोले,
कमीला ५ तोले और शुद्ध बछनाग २॥ तोले लेकर (५५९३) महोदयप्रत्ययसाररसः सबको एकत्र खरल करके थोड़ा थोड़ा चूनेका
( र. र स. । अ. १५) स्वच्छ पानी डालते हुवे सात दिन तक घोटें और रसग्रस्तसमुद्गीर्णगन्धकस्य पलत्रयम् । उसका गोला बना कर सात दिन कड़ी धूपमें मृतमूताभ्रताम्रायः कर्ष कर्ष पृथक पृथक् ॥ सुखावें । तदनन्तर गुड़ और शुद्ध मनसिल बराबर पलं हिङ्गुलचूर्णस्य माक्षिकस्य पलत्रयम् । | बराबर लेकर दोनोंको पानीके साथ बारीक पीस पलं कम्पिल्लकस्यापि विषस्यार्धपलं तथा ॥ लें और उपरोक्त गोले पर इसका १ अंगुल मोटा सप्ताहं मर्दयेत्सर्वं दत्वा चूर्णोदकं मुहुः। लेप करके सुखा लें । अब एक मूषामें १५ तोले ततस्तद्गोलकं कृत्वा सप्ताहं चातपे क्षिपेत् ॥ शुद्ध गन्धकका चूर्ण डालकर उस पर बह गोला गुडचूर्ण शिलाचूर्ण लिम्पेदङ्गुलिकाधनम् । । | रख दें और गोलेके ऊपर १५ तोले शुद्ध हरतात्रिपलं गन्धकं दत्वा क्रौंच्यामथ च गोलकम् ॥ लका चूर्ण डाल कर मूषाको अध्छी तरह बाद कर गोलकस्योपरिष्टाच क्षिपेत्तालं पलत्रयम् । । दें और उस पर कपड़ मिट्टी करके गजपुटकी अग्नि संरुध्याऽतिप्रयत्नेन दद्यादजपुटं खलु ॥ दें। जब सम्पुट स्वांग शीतल हो जाय तो उस
For Private And Personal Use Only