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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२२ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ मकारादि ___इनमें से १-१ गोली(या यथोचित मात्रानुसार)। इसके सेवनसे एक दोषज, द्विदोषज और खिलानेसे सन्निपात ( शीताङ्ग सन्निपात ) नष्ट | सन्निपातज महा श्वास, पांच प्रकारकी खांसी होता है। और रक्तपित्त, नष्ट होता है। जिस प्रकार इन्द्रका वन ( बिजली ) वृक्षको अनुपान--शहद । और सिंह वनके पशुओंको नष्ट कर देता है उसी | ( मात्रा--१ माशेसे डेढ़ माशे तक ।) प्रकार यह रस रोगसमूह को नष्ट करनेमें (५५८३) महासिद्धेश्वररसः समर्थ है। (र. का. धे. । कुष्ठ.) (५५८२) महाश्वासारिलौहम् | शुद्ध सूतं शिला ताप्यं मृताभ्रं मर्दयेत्समम् । (र. रा. सु. ; भै. र. । श्वासा.) जातीफलं लवङ्गैला प्रमूका तद्विभागकम् ।। फर्षद्वयं लौहचूर्ण कर्षार्द्धमभ्रमेव च । चूर्णयेत्सर्वमेकत्र रसः सिद्धेश्वरो महान् । सिता कर्षद्वयश्चैव मधु कर्षद्वयं तथा ॥ | द्विगुझं भक्षयेत्क्षौद्रैरनुपानमथोच्यते ॥ त्रिफला मधुकं द्राक्षा कणा कोलास्थिवंशजा। पटोलद्विनिशानिम्बतिक्तकोशातकीवचा। तालीशपत्रं वैडणमेला पुष्करकेशरम् || | पथ्यायष्टिसमं क्वार्थ वस्त्रपूतं तदाहरेत् ॥ एतानि लक्ष्णचूर्णानि कर्षार्द्धश्च समांशिकम् । क्वाथपादयुतं चाज्यं पचेदाज्यावशेषकम् । लौहे च लौहदण्डेन मर्दयेत्प्रहरद्वयम् ॥ एतदाज्यं पलार्धे तु ह्यनुपानं च कुटनुत् ॥ ततो मात्रां लिहेत्क्षौर्बुद्ध्वा दोषबलाबलम् । लेपं सिद्धरसेनैव सुप्तस्थाने प्रकारयेत् । इदं श्वासारिलौहश्च महावासं विनाशयेत् ॥ तत्पृष्ठे रसोनपिण्ड बद्ध्वा स्फोटः प्रजायते ॥ कासं पञ्चविधञ्चैव रक्तपित्तं सुदारुणम् । पुनर्लेप पुनर्बद्ध्वा विनश्येत्सुप्तिमण्डलम् ॥ एकजं द्वन्द्वजश्चैव तथैव सान्निपातिकम् ।। शुद्ध पारद ( रस सिन्दूर ), शुद्ध मनसिल, निहन्ति नात्र सन्देहो भास्करस्तिमिरं यथा ॥ | सोनामक्खी भस्म और अभ्रक भस्म १-१ भाग लोह भस्म २॥ तोले, अभ्रक भस्म ७॥ तथा जायफल, लौंग, छोटी इलायची और असमाशे, मिसरी २॥ तोले, शहद २॥ तोले: हरे, गन्धका चूर्ण २-२ भाग लेकर सबको एकत्र बहेड़ा, आमला, मुलैठी, मुनक्का, पीपल, बेरकी मिलाकर घोटें। गुठलीकी गिरी, बंसलोचन, तालीस पत्र, बायबि- __इसे शहदके साथ खाने और इसीका लेप डंग, छोटी इलायची, पोखरमूल और नाग केसरका करनेसे सुप्ति और मण्डल कुष्ठ नष्ट होता है। चूर्ण आधा आधा कर्ष (प्रत्येक ७॥ माशे) ले कर लेप लगाकर ऊपरसे रहसन पीसकर बांध सबको लोहेके खरलमें लोहेकी मूसलीसे २ पहर | देना चाहिये । इससे छाला पड़ जायगा । ( उससे घोट कर सुरक्षित रक्खें। पानी निकल जाने पर मक्खन लगा दें और जब For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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