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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२० भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [मकारादि अग्निपर्णीहरिलताभृङ्गार्द्रसुरसारसैः । महाशङ्खद्रावक: मर्दितं लागलीकन्दप्रलिप्ते सम्पुटे पचेत् ॥ " शङ्खद्रावक (महा) ” देखिये । अर्धपादं च पोटल्याः काकिन्यौ द्वे विषस्य च । लिहेन्मरिचचूर्ण च मधुना पोटलीसमम् ॥ महाशङ्खवटी क्षयग्रहण्यतीसारवद्भिदौर्बल्यकासिनाम् ।। " शङ्खवटी (महा)" देखिये । पाण्डुगुल्मवतामेष महावीरो हितो रसः ॥ (५५७९) महाशार्दूलरसः अतिस्थूलस्य पूयासक्कफानुद्वमतः क्षये । ( रसे. सा. सं. ; र. रा. सु. । सूतिका.) न योजयेत्क्षीररसान्विरुद्धक्रमतत्त्वतः ॥ अभ्रकं पुटितं तानं स्वर्ण गन्धश्च पारदम् । शुद्ध तूतिया १० माशे, शुद्ध पारद ५ माशे, शिला टङ्क यवक्षारं त्रिफलायाः पलं पलम् ।। शुद्ध बछनाग (मीठा विष) ५ माशे, तीक्ष्ण लोह गरलस्य तथा ग्राह्यमर्द्धतोलकसम्मितम् । भस्म १० माशे तथा शुद्ध गन्धक और मोती स्वगेलापत्रकञ्चैव जातीकोषलवङ्गकम् ॥ ११-१। तोला ले कर पारे गन्धककी कज्जली मांसी तालीशपत्रञ्च माक्षिकश्च रसाञ्जनम् । बनाकर उसमें अन्य ओषधियां मिला कर सबको एषां द्विकार्षिकं भागं देयश्चापि विचक्षणैः ।। १-१ दिन अग्निपर्णी (आगिया), विष्णुकान्ता, द्रवे किश्चित्स्थिते चूणे मरिचस्य पलं क्षिपेत् । भंगरा, अदरक और तुलसीके रसमें घोटकर गोला भावना च प्रदातव्या पूर्वक्तेिन रसेन च ॥ बनावें । तदनन्तर दो शरावों के भीतर लांगली निहन्ति विविधात्रोगाम्ज्वरान्दाहान्वमिं कन्द ( कलियारीकी जड ) का लेप करके उसमें भ्रमिम् । इस गोलेको रख कर यथा विधि सम्पुट बनाकर तथातिसारकञ्चैव वद्विमान्यमरोचकम् ॥ ( लघु पुटमें ) फूंक दें। एवं पुटके स्वांग शीतल विशेषाद्गर्भिणीरोगं नाशयेदचिरेण च ॥ होने पर उसमेंसे औषधको निकालकर उसमें उसका आठवां भाग ' मृगाङ्क पोटली रस' तथा २ रत्ती __अभ्रक भस्म, ताम्र भस्म, स्वर्ण भस्म, शुद्ध शुद्ध बछनागका चूर्ण मिला कर खरल करें। गन्धक, शुद्ध पारद, शुद्ध मनसिल, सुहागेकी खील, ___ इसे यथोचित मात्रानुसार काली मिर्च के चूर्ण जवाखार और हर्र, बहेड़े तथा आमलेका चूर्ण और शहदके साथ सेवन करनेसे क्षय, संग्रहणी, ५--५ तोले; शुद्ध बछनाग ३।।। माशे; दालचीनी अतिसार, अग्निमांद्य, कास, पाण्डु औ गुल्मका इलायची, तेजपात, जावित्री, लौंग, जटामांसी, भाश होता है। तालीस पत्र, स्वर्णमाक्षिक भस्म और रसौत यदि क्षयका रोगी अत्यन्त स्थूल हो या पीप, १ पूर्वोक्तेन रसेन चःखून और कफकी वमन करता हो तो उसे मांस रस | प्रीष्मसुन्दरकस्यापि नागवल्लीरसेन च । और दूध देना हितकारी नहीं है । भावयेत्सप्तधा.................... For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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