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रसप्रकरणम्
चतुर्थों भाग:
२१७
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इसे शीतल जलके साथ सेवन करनेसे मूढ इसे खिलाकर सायंकालको उष्ण तक्रमें सेंधावातका नाश होता है।
नमक मिलाकर पिलाना चाहिये । शीतल जल न इसके सेवन कालमें क्षार और अम्ल पदार्थोसे देना चाहिये । परहेज करना चाहिये।
(५५७४) महावहिरसः (३) (५५७३) महावहिरसः (२)
( शा. सं. । खं. २ अ. १२; रसे. चि. म. । ( रसे. सा. सं. । उदर. ; र. र. स. । अ. १९)
अ. ९; र. रा. सु.; रसे. सा. सं. । उदरा.) चतुः सूतस्य गन्धाष्टौ रजनीत्रिफला शिलाः प्रत्येकन्तु त्रिभागं स्यादन्तीयूषणजीरकम् ।।
चतुःसूतस्य गन्धाष्टौ रजनी त्रिफला शिवा। प्रत्येकमष्टभागं स्यादेकीकृत्य विचूर्णयेत् ।
प्रत्येकं च द्विभागं स्यात् त्रिज्जैपालचित्रकम् ॥ जयन्तीस्नुपयोभृङ्गवहिवातारितैलकैः ॥
प्रत्येकं च त्रिभागं स्यात् ब्यूषणं दन्तिनीरकम् । प्रत्येकेन क्रमाद्भाव्यं सप्तवारं पृथक्पृथक् ।
प्रत्येकमष्टभागं स्यादेकीकृत्य विचूर्णयेत् ॥ महावहिरसो नाम निष्कमुष्णजलैः पिबेत् ॥
जयन्तीस्नुपयोभृङ्गहिवातारितैलकैः ।
प्रत्येकेन क्रमाद्भाव्यं सप्तवारं पृथक् पृथक् ॥ विरेचनं भवेत्तेन तक्रमुष्णं ससैन्धवम् । दिनान्ते दापयेत्पथ्यं वर्जयेच्छीतलं जलम् ॥
महावह्निरसो नाम निष्कमुष्णजलैः पिबेत् । सर्वोदरहरः प्रोक्तो मूढवातहरः परः॥
विरेचनं भवेत्तेन तक्रभक्तं ससैन्धवम् ॥
दिनान्ते दापयेत्पथ्यं वर्जयेच्छीतलं जलम् । शुद्ध पोरद ४ भाग; शुद्ध गन्धक ८ भाग;
सर्वोदरहरः प्रोक्तो मूढवातहरः परः॥ हल्दी ३ भाग, त्रिफला (हर्र, बहेड़ा, आमला ) ३ भाग, शुद्ध मनसिल ३ भाग, दन्तीमूल, सोंठ,
___ शुद्ध पारद ४ भाग, शुद्ध गन्धक ८ भाग; मिर्च, पीपल और जीरा ८-८ भाग लेकर प्रथम |
हल्दी २ भाग, त्रिफला (हर्र, बहेड़ा, आमला ) पारे गन्धककी कज्जली बनावें और फिर उसमें
२ भाग, भुई आमला ( पाठान्तरके अनुसार हरअन्य ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर सबको पृथक्
ताल ) २ भाग; निसोत, जमालगोटा और चीतापृथक् सात सात दिन जयन्तीके रस, सेहुंड (थोहर)
मूल ३-३ भाग तथा त्रिकुटा ( सोंठ, मिर्च, के दूध, भंगरेके स्वरस, चीतेके क्वाथ और अण्डीके
पीपल ), दन्तीमूल और जीरा ८-८ भाग लेकर तेलमें घोट कर सुरक्षित रखें ।
प्रथम पारे गन्धककी कजली बनावें और फिर
उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर सबको इसे १ निष्क मात्रानुसार उष्ण जलके साथ
जयन्तीके रस, सेंड ( सेहुंड-थोहर ) के दूध, खिलानेसे विरेचन हो कर समस्त उदर और मूढवात रोग नष्ट होते हैं।
१ सूतस्य गन्धकस्याष्टौ इति पाठान्तरम् । १ 'शिवा' इति पाठान्तरम् ।
२ 'शिला इति पाठान्तरम् । २ द्विभागमिति पाठान्तरम् ।
३ सप्तभागमिति पाठान्तरम् ॥ २८
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