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२१२ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ मकारादि साजीर्णविष्टम्भविसर्पदाह
समस्त कुष्ट, खांसी, शोष, शोथ, ज्वर और मूत्रविलम्बिकाश्चाप्यलसं प्रमेहम् ॥ कृच्छ्रका नाश होता है। कुष्ठान्यशेषाणि च कासशोषं
मात्रा-२ गोली। हन्यात्सशोथं ज्वरमूत्रकृच्छम् । (५५६५) महाराजनृपतिवल्लभः (२) मतान्तरे सर्वतोभदनाम
__(नृपवल्लभः) महेश्वरेणैव विभापितोयम् ॥
( रसे. सा. सं. : भै. र. । ग्रह. ) कान्त लोह भस्म ३॥ तोले; अभ्रक भस्म, माक्षिकं लौहमभ्रश्च वङ्गं रजतहाटकम् । ताम्र भस्म, चांदी भस्म और स्वर्ण माक्षिक भस्म, | ग्रन्थिर्यमानिका चोचं ताम्र नागरटङ्कणम् ॥ ११-१। तोला तथा स्वर्ण भस्म, मोती भस्म, सुहा- सैन्धवं वालकं मुस्तं धन्याकं गन्धकं रसम् । गेको खील, मृगशृंग-भस्म; गजपीपल, दन्तीमूल, शृङ्गी कपूरकञ्चैव प्रत्येकं माषकोन्मितम् ॥ काली मिर्च, तेजपात, अजवायन, सुगन्धवाला, माषद्वयं रामठं स्यान्मरिचानां चतुष्टयम् । मोथा, सोंठ, धनिया, सेंधा नमक, कपूर, बायबिडंग, जातीकोषं लवङ्गश्च पत्रश्च तोलकोन्मितम् ।। चीतामूल और शुद्ध बछनाग ( मीठा विष ) का नाभिशङ्ख विडङ्गश्च शाणं मापद्वयं विषम् । चूर्ण एवं शुद्ध पारद और गन्धक प्रत्येक ७|| माशे; | कर्षषट्कं सत्रिमापं सूक्ष्मैलानां ततः क्षिपेत् ॥ निसोतका चूर्ण १। तोला; लौंगका चूर्ण तथा विडं कर्षद्वयं सर्वं छागीक्षीरेण पेषयेत् । आवत्री, जायफल और दालचीनीका चूर्ण ५-५ चतुर्गुञ्जमितं खादेत्सानाहग्रहणीं जयेत् ।। तोले एवं विडनमक सबसे आधा तथा इन समस्त शम्भुना निर्मितो ह्येष पूर्ववद्गुणकारकः ।
ओषधियोंके बराबर छोटी इलायचीका चूर्ण लेकर नाम्नी महाराजपूर्वा नृपवल्लभ उच्यते ॥ प्रथम पारे गन्धककी कजली बनावें और फिर स्वर्ण माक्षिक-भस्म, लोह भस्म, अभ्रक भस्म, उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिला कर सबको बंग भस्म, चांदी भस्म, स्वर्ण भस्म, पीपला मूल, बकरीके दूध और बिजौ रेके रसकी सात सात । अजवायन, दालचीनी, ताम्र भस्म, सोंठ, सुहागेकी भावनो दे कर ५-५ रत्तीकी गोलियां बनाकर खील, सेंधा नमक, सुगन्ध बाला, नागरमोथा, छायामें सुखा लें।
धनिया, शुद्ध गन्धक, शुद्ध पारद, काकड़ासिंगी इनके सेवनसे अग्निमांद्य, आमयुक्त प्रवृद्ध | और कपूर १-१ माशा, भुनी हुई हींग २ माशे, संग्रहणी, कृमि रोग, पाण्डु, छर्दि, अम्लपित्त, । काली मिर्च ४ माशे, जावत्री, लौंग और तेजपात हृदय रोग, गुल्म, उदर रोग, अफारा, भगन्दर, ८-८ माशेः शंख नाभिकी भस्म और बायबिडंग पित्तज अर्श, सोम रोग, आठ प्रकारके शूल, अजीर्ण, ४-४ माशे; शुद्ध बछनाग २ माशे और छोटी विष्टम्भ, विसर्प, दाह, विलम्बिका, अलसक, प्रमेह, ! इलायची ९९ माशे तथा बिड नमक ३२ माशे
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