________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रसप्रकरणम् ]
चतुर्थो भागः
२०५
लिखित द्रव्योंका अत्यन्त महीन चूर्ण डाल देना भोजन करके; दीन भाव और ग्लानिको छोड़कर, चाहिये।
दृढ़ संकल्प के साथ इसका सेवन प्रारम्भ करना बायबिडंग १० तोले, त्रिकुटेका चूर्ण १० तोले,
चाहिये। हर्र, बहेड़े और आमलेका चूर्ण १०-१० तोले,
इसके सेवन कालमें इन्द्रियोंको वशमें और बांझ ककाड़ेकी जड़का चूर्ण ५ तोले, तथा तगर,
आत्माको शान्त रखना चाहिये । परोपकार करना गजकगा (कन्द शाक विशेष अथवा मूषाकर्णी), और क्रोधका त्याग करना चाहिये । विधारामूल, लाल चीताकी जड़, नीलकी जड़, ताल. इसे प्रातःकाल ८ माशेकी मात्रानुसार शीतल मूली, लाल कनेरकी जड़, हपुषा, तेजपात, असगन्ध, | जलके साथ खावें । शतावर, निर्मलीके फल, पुनर्नवा, आक, अरणी, पथ्यापथ्य-नियमित भोजन करें । शाक, बलामूल (खरैटोकी जड़ ), कटेली, गिलोय, खटाई, दही, अत्यन्त तिक्त, कटु, कषाय, क्षार, भंगरा, निसोत, भांग और काला भंगरा । प्रत्येकका | अभिष्यन्दी, तीक्ष्ण, रूक्ष, वातकारक, विदाही और चूर्ण ५-५ तोले । ( दूध इतना डालना चाहिये दुर्जर अन्नपानका त्याग करें । मद्यपानसे परहेज़ कि ४ पहर तक अभ्रकको पकानेके पश्चात् भी करें । जोर जोर न पढ़ें । ब्रह्मचर्यसे रहें। अत्यन्त वह इतना पतला रहे कि उसमें उक्त समस्त चूर्ण शीतल पदार्थ न खावें । दिनको न सोएं । द्वेष, आसानीसे मिल सके ।)
तीक्ष्ण पवन, तेज धूप, रात्रि जागरण, चिन्ता, चूर्ण मिलानेके पश्चात् जब वह ठंडा हो शोक, विषाद, ( शक्तिसे अधिक ) व्यायाम, मदजाय तो उसमें २० तोले घी. और शहद तथा कारी और उन्मत करने वाले पदार्थ और आनूप मिश्री (४०-४० तोले ) मिलाकर सबको पुनः देशज जन्तुओंका मांस तथा शीतल पान (बरफ पत्थर पर पीसकर चिकने पात्रमें भर कर सुर- आदि) का त्याग करना चाहिए । क्षित रखें।
शिरवारी शाक, साठीके चावल, मूंगकी धुली ___ इस औषधको उत्साह पूर्वक विनीत भावसे | हुई दाल, सुपारी, मुनक्का, पक्के आम, स्वादु और ग्रहण करना चाहिये और सेवन प्रारम्भ करनेसे पके फल, उत्साहकारक पदार्थ और भूमिसे ऊपर पूर्व किसी योग्य वैद्यकी देखरेखमें मृदु वमन विरे. | ग्रहण किया हुवा बरसातका जल पथ्य है।। चन द्वारा शरीर शुद्धि कर लेनी चाहिये । इसे | औषधकी मात्रा प्रति सप्ताह थोड़ी थोड़ी सेवन करनेसे पूर्व अग्नि दीत और शरीर रोग रहित बढ़ाते हुवे ६ मास तक सेवन करना चाहिये। होना आवश्यक है।
इसके सेवनसे समस्त व्याधियों और बलि प्रथम गुरु, अग्नि, अतिथि, सिद्ध, साधु और पलितका नाश होकर तेज, शौर्य, बुद्धि और वाक्शमान्य जनोंका पूजन करके; घृत युक्त भातका | क्तिको अत्यन्त वृद्धि होती है । मद मत्त हाथी के
For Private And Personal Use Only