SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 206
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः लघु पुटमें पाक करें । तदनन्तर उसमें उसका । (५५५१) महात्रिपुरभैरवरसः तीसवां भाग शुद्र बछनाग ( मीठा विष ) का चूर्ण (र. का. धे. । शूला.) मिला कर खरल करें। | भागौ रसस्य भागः स्याटेम्नः पिष्टी विधाय च इसे १ रत्ती मात्रानुसार भैसके घीके साथ | तया द्वादशभागानि ताम्रपत्राणि लेपयेत् ।। खा कर ऊपरसे १ माशा बाबचीका चूर्ण शहद उर्खाधो लवणं दवा पत्रमानं समन्ततः । और धीमें मिलाकर चाटना चाहिये । सिञ्चन्मत्स्याक्षिनीरेण रुद्धवा यामचतुष्टयम् ॥ इसके सेवनसे समस्त प्रकारके कुष्ठ नष्ट | क्षारस्य मृगशृङ्गस्य चूर्ण योज्यं समन्ततः । होते हैं। पचेच्छूलहरः मूतो महात्रिपुरभैरवः ॥ महातालेश्वररसः (४) माषो मध्वाज्यसंयुक्तो देयोऽस्य परिणामजम्। अन्ये त्वेरण्डतलेन हि त्रययुतो हि सः ॥ (धन्व. । वातरक्त.) २ भाग शु पारद में १ भाग शुद्ध स्वर्णभा. भै. र. भाग २ प्रयोग संख्या २६८१ पत्र मिलाकर इतना धोटें कि सबकी कोमल पिठी " तालेश्वरो रसः न. ४ ” देखिये । बन जाए । अब १२ भाग ताम्रपत्रों पर इसका महातालेश्वररसः (५) लेप करके उन्हें, नीचे ऊपर सेंधा नमकका चूर्ण ( र. र. । कुष्ठ. ; र. का. धे. । कुष्ठा. ; र. भर कर हाण्डीमें रखें और उसके ऊपर मछेछी र. स. । अ. २०; वृ. यो. त. । त. १२० (मत्स्याक्षि ) का रस डाल कर हाण्डीके मुख पर यो. त. । त. ६२ ) शराव ढक कर सन्धिको अच्छी तरह बन्द कर दें। भा. भै. र. भाग २ प्र. सं. २६५२ "ताल- । तदनन्तर इसे ४ पहरकी अग्नि दे कर, हाण्डीके केश्वरो रसः (महान) नं. १३ ” देखिये । स्वांग शीतल होनेपर उसमेंसे ताम्र पत्रोंको निकाल महातालेश्वररसः (६) लें; और उन्हें फिर उसी हाण्डीमें मृगशृंगकी (र. चि. म. । स्त. २) भस्मके बीचमें रख कर ४ पहरकी अग्नि दें। इसे १ माशेकी मात्रानुसार शहद और धीके भा. भै. र. भाग २ में प्रयोग सं. २६५४ साथ खिलानेसे परिणाम शूल नष्ट होता है । अन्य 'तालकेश्वरो रसः । नं. १५ देखिये ।। प्रकारके शूलोमें इसे अरण्डके तेल और हिंगुत्रय महात्रिगन्धरसः (हींग, हिंगुपत्री, और नाड़ीहिंगु ) के साथ देना (र. का. धे. । कुष्ठा.) चाहिये । ( व्यवहारिक मात्रा १ रत्ती) भा. भै. र. भाग २ प्रयोग संख्या २७१५ महाद्रावकरसः " त्रिगन्ध रसः ” देखिये । उसमें इसकी अपेक्षा गन्धक अधिक है। मकारादि मिश्रप्रकरणमें देखिये । २४ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy