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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९८ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः मकारादि शुद्ध पारद १ भाग, शुद्ध गन्धक दो भाग, | तचक्रिकां तदुपरि स्थापयेद्रसगोलकम् । सुहागेकी खील २ भाग, शुद्ध बछनाग, ( मीठा तमर्कपत्रपिहितं सन्धौ किप्त्वा पचेच्छनैः॥ विष) १ भाग, काली मिर्चका चूर्ण ५ भाग तथा मध्याग्निना चतुर्यामं स्वाङ्गशीतं समुद्धरेत् । कायफलका चूर्ण और शुद्ध जमाल गोटा ५-५ गुञ्जाद्वयं ददीतास्य सिताजीरकसंयुतम् ॥ भाग ले कर सबको एकत्र मिला कर १ पहर दाहपूर्व ज्वरं शीतं शीघ्रं च विषमं जयेत । खरल करके रक्खें। तुलसीसितमरिचैर्देयः शीतज्वरेऽपि च ॥ . इसके सेवनसे सन्निपातज जीर्णज्वर १ पहर | विषमं नाशयत्येव दधिदुग्धस्य भक्षणात् ॥ में नष्ट हो जाता है। ___अशुद्ध पारद और हरतालको सात सोत ( मात्रा २ रत्ती । अनुपान शीतल जल ) दिन करेले और भंगरेके रसमें पृथक् पृथक् खरल महाज्वराङ्कुशः (७) | करके गोला बना कर (सुखा लें)। (र. का. धे. ज्वर.) एक मजबूत कपड़मिट्टीकी हुई हाण्डी के " मन्थान भैरव रस" संख्या ५५१९ देखिये । | अर्ध भागको बालू (रेत ) से भरकर उसके ऊपर ___ उसमें और इसमें केवल इतना ही अन्तर है ( शुद्ध ताम्रकी चक्री रख कर उस पर) उपरोक्त कि इसमें अभ्रक भस्म भी पड़ती है और लोह | गोला रख दें और उसे ताम्र-पत्रसे ढक कर ससम्पुट में पाक करनेके पश्चात् हरिताल आदिका | न्धिको भली भांति बन्द कर दें एवं (हाण्डीको चूर्ण नहीं मिलाया जाता । शेष प्रयोग तथा पाठ शरावसे ढक कर उसके जोड़को बन्द करके ) लगभग समान ही है। ४ पहर मध्यमाग्नि पर पकावें। जब हाण्डी स्वांगमहाज्वराङ्कुशः (८) शीतल हो जाय तो उसमेंसे हरताल-भस्मको नि( भै. र. । ज्वर. ; र रा. सु. । ज्वर.) | काल कर खरल करके रक्खें । प्रयोग संख्या २१६६ “ ज्वराङ्कुश रस इसे जीरेके चूर्ण और मिश्रीके साथ देनेसे (१०)" देखिये। दाहपूर्व ज्वर, शीतज्वर, और विषम ज्वर नष्ट (५५४७) महातालकेश्वररसः (१) । होता है। ( र. का. धे. । विषम ज्वर. ) इसे शीत ज्वरमें तुलसी पत्रके रस और अशुद्धपारदं तालं मर्दयेद्वासरं दृढम् । श्वेत मिर्च (सहंजनेके बीज ) के चूर्ण के साथ कारवल्लोमार्कवयो वयेद् वारसप्तकम् ॥ भी दे सकते हैं। इसके सेवनमें विषम ज्वरमें दही वैस्तद्गोलकाकारं कारयेन्मतिमान्भिषक् । और दूध पथ्य हैं। भाण्डाधं वालुकापूर्ण कृत्वोपरि निवेशयेत् ॥! मात्रा-२ रत्ती। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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