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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसपकरणम् ] चतुर्थों भागः १८३ ... (५५२७) मस्कमृगाङ्कोरसः । (५५२८) महाकनकसिन्दररसः (र. रा. सु. । प्रमेह.) (यो. र.; र. रा. सु.; वृ. नि. र. । क्षय.) सुशुद्धं पारदं चैव सुशुद्धं गन्धकं भवेत् ।। | रसगन्धकनागाश्च रसको माक्षिकाभ्रके। रङ्गं शुद्धं समादाय नवसादरमेव च ॥ | कान्तविद्रुममुक्तानां बंगभस्म च तारकम् ॥ समभागानि सर्वाणि मर्दयित्वा सुखल्लके। भस्म कृत्वा प्रयत्नेन प्रत्येकं कर्षसम्मितम् । काचकूप्यां विनिःक्षिप्य पावके स्थापयेबुधः॥ सर्वतुल्यं शुद्धहेमभस्म कृत्वा प्रयोजयेत् ॥ मुखे मुद्रा च नो देया धृमं संलक्षयेत्ततः। । मर्दये त्रिदिनं सर्व हंसपादीरसैभिषक् । निर्धमे जायमाने तु सिद्धो मस्कमृगाङ्ककः ॥ | ततो वै गोलकान्कृत्वा काचकूप्यां विनिक्षिपेत् ॥ मधुमेइन्तु मेहानां गणं नाशयते ध्रुवम् । रुद्ध्वा तत्काचकूपी च सप्तवस्त्रेण वेष्टिताम् । मधुना भक्षयेच्चैव सूक्ष्मला चूर्णकेन च ॥ ततो वै सिकतायन्त्रे त्रिदिनं चोक्तवह्निना ।। रससागरग्रन्थे तु सुश्रेष्ठं स्वर्णभस्म च ॥ पश्चात्तं स्वागशीतं च पूर्वोक्तरसमर्दितम् । ___ शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, शुद्ध बंग (कलई) विनिक्षिप्य करण्डेऽथ सम्पूज्य रसराजकम् ॥ और नौसादर समान भाग लेकर प्रथम बंगको महाकनकसिन्दरो राजयक्ष्महरः परः। आगपर पिघलाकर पारदमें डालदें और अच्छी तरह । पाण्डुरोगं श्वासकासं कामलाग्रहणीगदान् ।। धोटें । जब रांग पारदमें मिल जाय तो उसमें | क्रिमिशोफोदरावर्तगुल्ममेहगुदाकरान् । गन्धक और नौसादर डालकर घोटें । जब अत्यन्त मन्दाग्निं छर्दिमरुचिमामशूलहलीमकान् ॥ महीन कज्जली हो जाय तो उसे आतशी शीशीमें ज्वरान्द्वन्द्वादिकान्सर्वान्सन्निपातांस्त्रयोदश । भरकर बालुका यन्त्रमें पकावें । शीशीका मुख | पैत्यरोगमपस्मारं वातरोगान्विशेषतः ॥ बन्द न करना चाहिए और उससे निकलने वाले रक्तपित्तप्रमेहांश्च स्त्रीणां रक्तस्रवांस्तथा । धुएं को देखते रहना चाहिए । जब धुंआ निक- विंशतिश्लेष्मरोगांश्च मूत्ररोगानिहन्त्यसौ ॥ लना बन्द हो जाय तो रसको तैयार समझें । हेमवर्ण्यश्च बल्यश्च आयुःशुक्रविवर्धनः । तदनन्तर शीशीके स्वांग-शीतल हो जाने पर उस- महाकनकसिन्दूरः काश्यपेन विनिर्मितः ॥ मेंसे औषधको निकालकर सुरक्षित रखें । शुद्र पारद, शुद्ध गन्धक, सीसा भस्म, शुद्ध (यह सुनहरे रंगकी भस्म होगी इसीको खपरिया, स्वर्ण माक्षिक भस्म, अभ्रक भस्म, कान्त स्वर्णवङ्ग और स्वर्ण राजबङ्गेश्वर भी कहते हैं।) | लोह भस्म, प्रवाल (मूंगा) भस्म, मोती भस्म, बंग इसे छोटी इलायचीके चूर्ण में मिलाकर शहदके | भस्म और चांदी भस्म ११-१। तोला तथा स्वर्ण साथ सेवन करनेसे मधुमेह और अन्य समस्त प्र- भस्म सबके बराबर (१३॥ तोले ) लेकर प्रथम कारके प्रमेह अवश्य नष्ट हो जाते हैं। ( मात्रा- पारे गन्धककी कज्जली बनावें और फिर समस्त १-२ रत्ती). औषधोंको एकत्र मिलाकर ३ दिन हंसपादी (लाल For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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