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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८२ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [मकारादि (५५२५) मल्लपञ्चरत्नरसः सूखता जाय त्यों त्यों उसे बार बार भिगोते रहें । (र. चं. । वातरोगा.) ४ पहरके पश्चात् अग्नि देनी बन्द करदें । जब स्वांग शीतल हो जाय तो दोनों प्यालोंको सावधास्फाटिको धवलश्चैव दाडिमः कृष्णपीतकौ । नीसे खोलकर ऊपरके प्यालेमें लगे हुवे संखियेके एते पञ्चाखुपाषाणाः गृहीयात्समभागकाः ।। फूल (जौहर) को छुड़ा लें। खल्ले किश्चिद्विचूाथ क्षिपेद्डुमरुयन्त्रके। रम्भाकन्दरसश्चैव प्रतिकर्षे चतुर्गुणम् ॥ इसे आधी रत्ती या एक रत्ती मात्रानुसार घी दापयेत्तत्सम चैव लिङ्गिनीस्वरसं तथा। | और खांडमें मिलाकर खिलानेसे समस्त वातज सन्धिलेपं ततः कृत्वा चूल्योपरि निधापयेत् ॥ और वातकफज रोग तथा स्वास, खांसी और सन्निपातज विषम ज्वर नष्ट होते हैं। मन्दाग्नौ पाचयेद्यामचतुष्टयविधानतः । मूनि दत्त्वाऽऽर्द्रवस्त्रं तु स्वाङ्गशीतं समुद्धरेत् ।। दाह हो तो शीतल जल पीना चाहिये । सर्ववातविकारेषु वातश्लेष्मगदे तथा। पथ्य-तक भात । श्वासे कासेऽथ विषमज्वरे चैव त्रिदोषजे ॥ नोट-अग्नि बहुत धीमी जलानी चाहिये । देयं गुञ्जार्धगुञ्ज वा पथ्यं तक्रोदनं हितम् । (व्यवहारिक मात्रा-२-३ चावल भर । घृतशर्करया देयं सर्ववातगदेषु च ॥ | १ रत्ती औषधको १ तोला खांडमें मिलाकर अच्छी पेयं शीतोदकं चात्र पञ्चरत्नरसोत्तमे ॥ तरह घोटकर उसकी ४ पुड़िया बना लेनी चाहिये । ___स्फटिकाके समान चमकदार सफेद रंगका, | इस प्रकार तोलकर मात्रा बनानेसे अधिक दिये भूरे रंगका, अनारके फूलके समान लाल रंगका जानेका भय नहीं रहेगा। ) और काला तथा पीला सोमल (संखिया ) समान (५५२६) मसूरिकारिरसः भाग लें और पांचोंको खरलमें डालकर जरा देर घोटकर ( मोटा चूर्ण बनाकर) एक मिट्टीके . (र. का. धे. । मसूरिका. ) शरावमें डालें और उसमें समस्त औषधसे चार गुना बिल्वपत्ररसेनैव मूछितः पारदेश्वरः। केलेकी जड़का रस तथा उतना ही शिवलिङ्गीका | हिलमोचीरसेनैव पोतो मधुसमायुतः ।। रस डालकर उसके ऊपर दूसरा शराव उलटा करके मसूरी सर्वजां हन्ति अस्थिनां सर्वदेहजाम् ।। ढक दें और दोनोंकी सन्धिको कपड़ मिट्टीसे अच्छी रस सिन्दूर अथवा कज्जलीको बेलके पत्तोंके तरह बन्द करदें। रसमें घोटकर यथोचित मात्रानुसार शहदमें मिलाइसे चूल्हे पर चढ़ाकर नीचे मन्दाग्नि जला कर हुलहुलके रसके साथ पिलानेसे सर्व दोषज और ऊपर वाले प्याले पर चार तह किया हुवा और सर्व देहमें फैली हुई अस्थिगत मसूरिका भी कपड़ा पानीमें भिगोकर रक्खें तथा ज्यों ज्यों वह ! नष्ट हो जाती है । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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