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रसप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः मनसिलके नाम
मनःशिलाशोधन (१) मनःशिला, मनो गुसा, मनोहा, नागजिबिका, | मनसिलको ३ दिन तक दोला-यन्त्र-विधिसे नेपाली, कुनटी, गोला, शिला और दिव्योषधि । | बकरीके मूत्रमें पकायें और फिर उसे बकरीके मूत्रकी मनसिल क्या है ?
सात भावना दें। इस प्रकार मनसिल शुद्ध हो __ मनसिल हरतालकी जातिकी ही ओषधि है। जाती है । हरताल अत्यन्त पीली होती है परन्तु मनसिलका
मनसिलशोधन (२) रंग लाल होता है।
मनशिलको पृथक् पृथक १-१ दिन जयन्ति मनसिलके भेद
के रस, तिलके तेल, बकरीके मूत्र और भंगरेके मनसिल तीन प्रकारकी होती है:
रसमें दोला यन्त्र-विधिसे पकानेसे वह शुद्ध हो
जाती है। (१) जो किञ्चित् पीत वर्ण और सिंगरफ (हिंगुल ) के समान लाल तथा अत्यन्त दीप्तिमान
मनशिलशोधन (३) हो उसे श्यामा कहते हैं।
मनसिलको अगस्ति (अगथिया) के पत्तोंके .. (२) जो अत्यन्त भारी और चूर्ण के रूप में |
रस या अदरकके रसकी सात भावना देनेसे वह लाल रंगकी आती है उसे करवीरा कहते हैं।
' शुद्ध हो जाती है । (३) तीसरे प्रकारकी मनसिल किञ्चिद्रक्तवर्ण
मनसिलशोधन (४) श्वेत और अत्यन्त भारी होती है उसे द्विखण्डिका
मनसिलको पृथक् पृथक् (१-१ दिन) कहते हैं।
भंगरेके रस, अगस्ती (अगथिया) के रस, जयन्तीके इन तीनों में 'करवीरा ' नामक मनसिल
रस और अदरकके रस में दोला यन्त्र-विधिसे स्वेश्रेष्ट होती है।
दित करनेसे वह शुद्ध हो जाती है । मनसिलके गुण
मनसिलशोधन (५) मनसिल गुरु, वर्ण को स्वच्छ करने वाली, मनसिलको एक एक दिन जयन्ती, भंगरा, सर, उष्ण, लेखनी, कटु तिक्त रस वाली, स्निग्ध तथा । और लाल अगस्ति के रसमें, दोलायन्त्र-विधिसे विष, स्वास, खांसी, भूतबाधा, कफरोग और .रक्त- स्वेदित करनेके पश्चात् १ पहर बकरीके मूत्रमें दोष नाशक होती है।
पकाकर काजीसे धो डालें। अशुद्धमनसिलके दोष
(५५१६) मनःशिलासत्त्वपातनम् अशुद्ध मनसिलके सेवनसे बल घटता और ( आ. वे. प्र. । अ. ६; र. प्र. सु. । अ. ६; मलावरोध, मूत्ररोध, मूत्रकृच्छ्, तथा शर्करा ( पथरी
र. र. स. । अ. ३.) भेद ) रोग उत्पन्न होता है।
तालवच्च शिलासवं ग्राह्य तैरेव चौषधैः ।
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