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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - रसमकरणम् ] चतुर्थों भागः १७५ (५५०७) मध्वादिलेहः | स्वाङ्गशीतं समुद्धृत्य चूर्णयित्वा निधापयेत् । ( ग. नि.। राजय. अ. ९.) गुञ्जात्रयं शर्करया ह्याकस्य रसेन च ॥ मधुताप्यविडङ्गाश्मजतुलोहघृताभयाः। दद्यात्समस्तविषमान् ज्वरान्हन्ति न संशयः । हन्ति यक्ष्माणमत्युग्रं सेव्यमाना हिताशिना ॥ पथ्यं क्षीरोदनं देयं मुद्गयूपो तथोदनम् ॥ ____ स्वर्ण माक्षिक भस्म, बायबिडंगका चूर्ण, शुद्ध शुद्ध मनसिल ३ भाग, शुद्ध गन्धक २ भाग शिलाजीत, लोह भस्म और हर्रका चूर्ण समान | और शुद्ध पारद १ भाग लेकर तीनों की कजली भाग ले कर एकत्र खरल करें। बनावें और उसे ( १ दिन ) घृतकुमारीके रसमें ___इसे शहद और घी के साथ सेवन करने घोट कर गोला बना (कर सुखा) लें । अब इस तथा पथ्य पालन करनेसे भयंकर राजयक्ष्मा रोग गोलेको २ भाग शुद्ध ताम्रके सम्पुटमें बन्द करके भी नष्ट हो जाता है। | ८ पहर बालुका यन्त्र में पकावें । जब वह स्वांग शीतल हो जाय तो सम्पुटको निकाल कर ( मात्रा-५ से १० रत्ती तक ) पीस लें। (५५०८) मनःशिलादिचूर्णम् । इसे ३ रत्ती मात्रानुसार खांड और अदरकके (व. से. । छर्दि.; च. सं. । चि. स्था., छर्दि.) रसके साथ सेवन करनेसे समस्त विषम ज्वर अवश्य मनःशिलायाः फलपूरकस्य नष्ट हो जाते हैं। रसैः कपित्थस्य च पिप्पलीनाम् । पथ्य-दूध भात तथा मूंगका यूष और भात । क्षौद्रेण चूर्ण मरिचैश्च युक्तं लिह्यात्कफच्छदिमुदीर्णवेगम् ॥ (५५१०) मनःशिलादियोगः शुद्ध मनसिल के ( १ रत्ती ) चूर्ण को बि (वं. से.; यो. र. छर्दि.; ग. नि. । छर्य. १४) जो रे नीबूके रस तथा कैथके रसके साथ चाटनेसे मनः शिलामागधिकोषणानां अथवा पीपल और काली मिर्च के चूर्णको शहदके ___चूर्ण कपित्थाम्लरसेन युक्तम् । साथ मिलाकर चाटनेसे भयंकर कफज छर्दि नष्ट लाजैः समांशैर्मधुनाऽवलीढं हो जाती है। छदि प्रसक्तामसकृन्निहन्ति । (५५०९) मनःशिलादिज्वराङ्कुशः शुद्ध मनसिल, पीपल और काली मिर्चका (र. रा. सु. । ज्वर.) चूर्ण १-१ भाग, धानकी खीलोंका चूर्ण ३ भाग मनःशिलावलिरसै गैर्वहिकरेन्दुभिः । तथा खट्टे कैयका रस १ भाग लेकर सबको एकत्र कुमारीरससम्पिष्टैः कृत्वा गोलन्तु शोभनम ॥ मिला लें। युगभागमिते सूक्ष्मे ताम्रसम्पुटके न्यसेत् । इसे शहदम मिला कर चाटनेसे छर्दि (वमन) ततस्तुवालुकायन्त्रे पचेद्यामं तु चाष्टकम् ॥ । शीघ्र ही नष्ट हो जाती है । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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