SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १६४ चूर्ण से भर दें | अब उसे चूल्हे पर चढ़ाकर धीरे धीरे अग्नि बढ़ाते हुवे १ दिन पाक करें । फिर जब शीशी स्वांगशीतल हो जाय तो उसमें से रसको निकालकर उसे आक के दूध तथा असगन्ध, काकोली, कौंच, मूसली, तालमखाना, शतावर, पद्मकन्द, कसेरु और कासके स्वरस या काथकी ३-३ भावना दें । तत्पश्चात् उसमें कस्तूरी, सोंठ, मिर्च, पीपल, कपूर, कंकोल, छोटी इलायची और लौंगका समान भाग- मिश्रित चूर्ण उससे (रससे) आठवां भाग तथा मिश्री समस्त मिश्रण के बराबर मिलाकर अच्छी तरह घोट कर रक्खें । इसे ५ माशेकी मात्रानुसार १० तोले गोदुग्धके साथ सेवन करने और मधुराहार करनेसे सौन्दर्य, बल और तेजकी वृद्धि होती है। इसके प्रभावसे पुरुष बहुतसी स्त्रियों के साथ बिना किसी प्रकारकी हानिके रमण कर सकता है। (५४८९) मदनकामदेवो रसः (३) भारत - मैषज्य रत्नाकरः ( र. स. क. । उल्लास ४ ) पारदाद्विगुणं गन्धं दत्वा कार्पासिकाद्रवैः । पूर्ववत्पचितो ह्येष तदा मदनकामदः || १ भाग पारद और २ भाग गन्धक की कजली करके उसे कपासके फूलोंके रसकी भावना देकर हरगौरी रस के समान बालुकायन्त्रमें पाक किया जाय तो मदन- कामदेव रस तैयार हो जाता है। 1 (५४९०) मदनकामो रसः ( र. र. रसा. । उपदेश ६ ) पद्मवीजं कसेरुं च कन्दं नालं च कर्णिकाम् ॥ शली भृङ्गराट् द्राक्षा पक्वं श्लेष्माकं फलम् । [ मकारादि विजयामर्कटीमाषाः शणबीजानि वै तिलाः || कोकिलाक्षस्य बीजानि भूकूष्माण्डी शतावरी । शृङ्गाटकं चिर्भिर्ट फञ्जीबीजानि चाश्वगन्धिका ॥ एतत्सर्वं समं चूर्ण्य पादांशं चाहरेत्पृथक् । पादांशस्याष्टमांशेन शुद्धं मृतं विमिश्रयेत् ॥ पारदादष्टमांश च कर्पूरं तत्र निःक्षिपेत् । चातुर्जातकमेकैकं कर्पूराद्विगुणं भवेत् ।। मूततुल्या सिता योज्या मधे रम्भाद्रवैर्दिनम् । तद्गोलं डामरे यन्त्रे क्रमवृद्धाग्निना पचेत् ॥ दिनान्ते चोर्ध्वलग्नं तद्ग्राह्यं रम्भ। द्रवैर्दृढम् । मर्दितं सितया तुल्यं माषैकं भक्षयेत्सदा ।। रसो मदनकामोऽयं बलवीर्यविवर्धनः । दिव्यरूपा भजेद्रामाः कामाकुलकलान्विताः ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कमलगट्टा, कसेरु, कमलकन्द, कमलनाल, मूसली, भंगरा, मुनक्का, ल्हिसौड़े के पक्के फल, भांग, कौंच बीज, उड़द, सनके बीज, तिल, तालमखाना, विदारीकन्द, शतावर, सिंघाड़ा, कचरिया, फञ्जी (विधारा भेद) के बीज, और असगन्ध का चूर्ण ८-८ तोले तथा शुद्ध पारद १ तोला, कपूर १॥ माशा, दालचीनी, तेजपात, इलायची और नागकेसरका चूर्ण ३-३ माशे और मिश्री १ तोला लेकर सबको एक दिन केले के रसमें घोटकर गोला बनावें और उसे उमरुयन्त्र में बन्द करके एक दिन क्रमवृद्धाग्नि पर पकायें । २४ घण्टेके बाद जब यन्त्र स्वांगशीतल हो जाय तो उसे खोलकर उसके भीतर ऊपरके पात्रमें लगे हुवे रसको छुड़ाकर सुरक्षित रक्खें । इसमें से नित्यप्रति १ माषा रस समानभाग For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy