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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६२ भारत-भैषज्य-रत्नाकर [मकारादि - - पीपल, पोपलामूल, चव, चीतामूल, सोंठ, (५४८७) मदनकामदेवो रसः (१) काली मिर्च, देवदारु, हर्र, बहेड़ा, आमला, (र. र. स. । उ. खं. अ. २७;) बायबिडंग ( पाठान्तरके अनुसार हींग ) और नागरमोथा इनका चूर्ण १५-१५ तोले और गोलं गन्धकमूतयोस्त्रिकटुकक्वाथेन वध्वाऽथशुद्ध मण्डूर सबसे २ गुना ( ३६० तोले.)। कुष्माण्डान्तरवस्थितं विपिहितं तेनैव लिप्त्वोलेकर सबको ५७६० तोळे (७२ सेर) गोमूत्रमें परि। पकावें । जब अवलेहके समान गाढ़ा हो जाए तो माषेद्वैयङ्गुलमोज्यपकमथ तत्कूष्माण्डमध्यादरे१-१। तोलेके मोदक बना लें। त्तच्चूर्णेन च सम्मिते सुरकृताचूर्णस्य मुष्टि द्वयम् ॥ इन्हें तक्रके साथ सेवन करने और केवल जया शतावरी कृष्णा कपिकच्छूफलं तिलाः । तक पर ही रहनेसे पाण्डु रोग, मन्दाग्नि, अरुचि, प्रत्येकं पलसम्माना यवाः पञ्चपलोन्मिताः ॥ अर्श, ग्रहणी विकार, उरुस्तम्भ, कृमि, प्लीहा, तावन्मोचफलं द्वे च यष्टी मुष्टिद्वयां शुभाम् । आनाह और गलरोग नष्ट होते हैं। " | निक्षिप्य सप्त सप्ताऽत्र भावनाः क्रमशश्चरेत् ॥ (५४८६) मण्डूराद्यवलेहः महाबलावलानागबलाभिर्द्राक्षयाऽपि च । (ग. नि. । पाण्डु. अ. ७) कृष्णाधात्रीक्षुभिश्चापि दन्तपात्रे निवेश्य च ॥ मण्डूरलोहाग्निविडङ्गपथ्या मत्स्यण्डिकायुतं वल्लद्रयमानं भजेनिशि । व्योषांशकः सर्वसमानताप्यः। अनुपान मिह प्रोक्तं धारोष्णं सुरभेः पयः ॥ मूत्रभृतोऽयं मधुनावलेहो दोषमार्तवजं हत्वा कुर्याद्वीर्यप्रवर्धनम् ।। ध्वजोत्साहं तथा स्त्रीषु वाजीकरणमुत्तमम् ॥ पाण्ड्डामयं हन्त्यचिरेण घोरम् ॥ .. अलं मलयवायुना कुमुदबान्धवेनाप्यलम् । मण्डूर भस्म, लोहभस्म, चीतामूल का चूर्ण मधुव्रतसखायिनः कलितपञ्चमाः के पिकाः ॥ बायबिडंगका चूर्ण, हर्र और त्रिकुटे ( सोंठ, मिर्च, अतो भज विशङ्कितं रतिसरोजिनीभास्करम । पीपल ) का चूर्णे १-१ भाग तथा सोनामक्खी मनोजपरिदैवतं मदनकामदेवं रसम् ॥ भस्म सबके बराबर लेकर सब को (आठ गुने) गोमू समान भाग पारद और गन्धककी कजली त्रमें पकावें जब अवलेहके समान गाढ़ा हो जाए बनाकर उसे त्रिकुटे (सोंठ, मिर्च, पोपल) के काथमें तो उतार लें। | घोटकर गोला बनावें और उसे (सुखाकर) भूमि- इसे शहद में मिलाकर सेवन करनेसे धोर कुष्माण्ड (विदारी कन्द) के भीतर रख दें तथा पाण्डु भी शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। , उसके मुखको उसीके कटे हुवे टुकड़ेसे बन्द करके (मात्रा-६ रत्ती) | उस पर उड़दकी पिट्ठीका २ .अंगुल . मोटा लेप For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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