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धूपप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः
१४७ (५४२६) मोचरसादिलेपः (२) __मोचरस, सुपारीकी राख, बेरीकी छाल और ( यो. र. । उपदंशा.)
शंखजीरा ( संगजराहत ) समान भाग लेकर
चूर्ण बनावें । मोचा पूगविभूतिं च कोलत्वकशङ्खजीरकम् ।।
इसे दूधके साथ पीने और घावों पर लगानेसे पिष्ट्रोपदंशे लेपोऽयं पयसा पानमेव च ॥ आतशककी गरमी तुरन्त शान्त होती और घाव नाशयेदुष्णतां तूर्ण शुष्कान्कुर्याव्रणानपि ॥ | सूख जाते हैं ।
इति मकारादिलेपपकरणम्
अथ मकारादिधूपप्रकरणम् (५४२७) मनःशिलादिधूपः । घरमें बन्दर, उल्लू और गोधकी विष्टाकी
( हा. सं. । स्था. ३ अ. ११) | धूनी देना बालकके लिये हितकारी है। मनःशिला सनागरं सगुग्गुलं ससार्षपम् । । (यह प्रयोग — स्कन्दापस्मार ' में उपयोगी है।। सदेवदारु पौष्करं विशल्यासर्जिकै रसम् ।। (५४२९) मशकहरधूपः घृतेन धूपयेद् गुदं गुदामयं भगन्दरम् ।।
(व. से. । कृमि.) निहन्ति दुष्टपीनसं व्रणं सपूयगन्धिकम् ॥ ककुभकुसुमं विडङ्ग लागली भल्लातकं तथोशीरमा
___ मनसिल, सोंठ, गूगल, सरसों, देवदारु, श्रीवेष्टक सर्जरसं मदनथैवाष्टमं दद्यात् ।। पोखरमूल, लांगली (कलिहारी), राल और रसौत एष सुगन्धो धूपो मशकानां नाशनः श्रेष्ठः । समान भाग लेकर चूर्ण बना और उसमें घी शय्यासु मत्कुणानां शिरसि वस्त्रे च युकानाम्।। मिलाकर धूनी दें।
अर्जुनके फूल, बायविडंग, लांगली, भिलावा, गुदाको इसकी धूप (धूनी) देनेसे अर्श और खस, धूपसरल, राल और मोम समान-भाग-लेकर भगन्दर नष्ट होता है।
चूर्ण करें । यह धूप दुष्ट पीनस और दुर्गन्धित पीप युक्त यह सुगन्धित धूप मशक, खाटके खटमल प्रणोंको भी नष्ट करती है।
और शिर तथा कपड़ोंकी जू (यूका) को नष्ट (५४२८) मर्कटपुरीषादिधूपः करती है। (वृ. नि. र. । बाल.)
(५४३०) मसूरधूपः मर्कटोलूकगृध्राणां पुरीषाणि पितृग्रहे।
(वृ. नि. र. । विषमज्व.) धूमः मुझजनैः कार्यों वालस्य हितमिच्छुभिः ॥ मसूरातूपकैधूपः सर्ववरगदापहः ।
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