________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१४६
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [मकारादि (५४२०) मूलकबीजादिलेपः (३) | स्थानपर नवनीत (मक्खन) मलकर गरम पानीसे ( व. से. । कुष्ठा. वृ. नि. र. । त्वग्दो. ;
| धो डालें । तीन दिन तक यही उपचार करनेसे
सिध्म नष्ट हो जाता है। ग. नि. । कुष्ठा.) बीजानि वा मूलकसर्षपाणां
(५४२२-२३) मृणालादिलेपः ___ लाक्षा रजन्यौ प्रपुनाटबीजम् ।
( वं. से.; ग. नि.; वृ. मा । शिरो.) श्रीवेष्टकव्योषविडङ्गकुष्ठं
मृणालबिसशालूकचन्दनोत्पलकेशरैः । पिष्ट्वा च मृत्रेण सुलेपनं स्यात् ॥ स्निग्धशीतैः शिरो दिहयात्तद्वदामलकोत्पलैः।। दणि सिध्मान् ।कटिभानि
___कमलनाल, कमलकन्द ( भिसण्डा ), कसेरू, पामां कपालकुष्ठं विषमं च हन्यात् ॥ लाल चन्दन, और कमलकेसर समान भाग लेकर
मूलीके बीज, सरसों, लाख, हल्दी, दारुहल्दी, सबको पीसकर घीमें मिलाकर लेप करनेसे अथवा पंवाड़के बीज, श्रीवेष्ट (धूप सरल यो राल), सोंठ, आमले और कमलको पीसकर धीमें मिलाकर लेप मिर्च, पीपल, बायबिडंग और कुठ समान भाग करनेसे शिर पीड़ा नष्ट होती है । ले कर चूर्ण बनावें ।
(५४२४) मृणालादिलेपः इसे बकरेके मूत्रमें पीसकर लेप करनेसे दाद, |
(शा. सं. । उ. खं. अ. ११) सिध्म, किटिभ, पामा और कपालकुष्ठका नाश
मृणालं चन्दनं लोध्रमुशीरं कमलोत्पलम् । हो जाता है।
सारिवामलकी पथ्या लेपः पित्तविसर्पनुत् ॥ (५४२१) मूलकबीजादिलेपः (४)
____ मृणाल (कमल नाल), लाल चन्दन, लोध, (व. से. । कुष्ठा. ; वृ. नि. र.।।
खस, कमल, नीलोत्पल, सारिवा, आमला और हर ___ त्वग्दो. ; यो. र. । कुष्ठ.) समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । बीजं मूलकजं निम्बपत्राणि सितसर्षपान् । इसका लेप करनेसे पित्तज विसर्प नष्ट होता है। गृहधूमश्च सम्पेष्य जलेनाङ्गं प्रलेपयेत् ॥ (५४२५) मोचरसादिलेपः (१) उद्वत्यै नवनीतेन क्षालयेदुष्णवारिणा ।
(वृ. नि. र. ; यो. र. । मेदो) त्र्यहादनेन सिध्मानि शाम्यन्त्याशु शरीरिणाम्।। हितो मोचरसो युक्तश्चूर्णेरुदधिफेनजैः । ___ मूलीके बीज, नीमके पत्ते, सफेद सरसों प्रलेपेन निहन्त्याशु देहदुर्गन्धमुत्कटम् ॥ और घरका धुवां समान भाग लेकर सबको पानीमें
___मोचरस, और समन्दर झागके समान भाग पीस कर सिध्म पर लेप करें फिर (दूसरे दिन) उस
मिश्रित चूर्णका लेप करनेसे शरीरकी दुर्गन्ध नष्ट १ पिष्ट्वाजमूत्रेणेति पाठान्तरम् । हो जाती है।
For Private And Personal Use Only