________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१४० भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[मकारादि पर ) लेप करनेसे शिरोरोग (प्रसवके पश्चात् | लेकर (पानीमें या घी कुमारके रसमें पीस कर ) होने वाली मक्कल शूलान्तर्गत शिर पीड़ा ) का नाश लेप करनेसे वातज शोथ नष्ट होता है । होता है।
(५३८४) मायाफलादियोगः (५३८१) मातुलुङ्गादिलेपः (२)
(रा. मा. । स्त्री रोगा. ३०) (व. से. । मसूरिका.; ग. नि. । मसूरि.)
मायाफलैर्यद्घनसारपुष्पसौवीरेण तु सम्पिष्टं मातुलुङ्गस्य केशरम् ।
सारान्वितैर्लेपितमादरेण । प्रलेपारपाचयत्याशु दाहं वापि नियच्छति ।। ___ बिजौरे नीबूकी केसरको सौवीरक कांजीमें
तदृद्धभावेऽपि वलीविमुक्तं पीस कर लेप करनेसे मसूरिका शीघ्र पक जाती है
स्त्रीणां वराङ्गं श्लथतां न याति ॥ और दाह शान्त होती है।
माजूफल और कपूरके चूर्णको शहदमें मि(५३८२) मातलङ्गादिलेपः (३) लाकर लेप करनेसे स्त्रीकी योनि वृद्धावस्थामें भी (शा. सं. । उ. खं. अ. ११; वृ. नि. र. ।
| बलि रहित हो जाती है और शिथिल नहीं होती। क्षुद्ररो.; वं. से.; वृ, मा. । क्षुद्र रोगा.) (५३८५) माषमस्यादिलेपः मातुलुङ्गजटा सर्पिः शिला गोशकृतो रसः ।
(रा. मा. । शिरो.) मुखकान्तिकरो लेपः पिटिकाव्यङ्गकालजित् ।। अन्तर्धमविदग्धमाषसुमसीमध्येऽर्कदुग्धं क्षिपे
बिजौरे नीबूकी जड़ और मनसिलका चूर्ण तैलं सर्षपसम्भवं च विमलं तेन प्रलिम्पेच्छिरः। तथा घी और गायके गोबरका रस समान भाग रोगान्मूर्ध्नि समुद्भवान्बहुविधांस्तद्वच्च वक्तोलेकर सबको एकत्र मिलाकर लेप करने से मुखकी
भवान् कान्ति बढ़ती और पिडिका, व्यङ्ग तथा कालक | | खालित्यं पलितानि चोपशमयत्येतत्पयुक्तं आदिका नाश होता है।
नृणाम् ॥ (५३८३) मातुलुङ्गादिलेपः (४)
उड़दोंको होण्डी में बन्द करके इस प्रकार ( वृ. मा. । व्रणशोथा.; वृ. नि. र.; व. से.; यो. फूकें कि धुंवा बाहर न निकले । तत्पश्चात् इस
र.; ग. नि. । व्रणशोथ.) राखमें (समान भाग) आकका दूध और सरसोंका मातुलङ्गानिमन्थौ च सुरदारु महौषधम् । तेल मिलावें । अहिंस्रा चैव रास्ना च प्रलेपो वातशोथजित् ॥ शिर पर इसका लेप करनेसे खालित्य (गंज), ___ बिजौ रेकी जड़, अरनीकी जड़, देवदारु, सोंठ, और पालित्य (बाल सफेद होना) इत्यादि बहुतसे कटेली और रास्ना को समान भाग मिश्रित चूर्ण रोग नष्ट होते हैं ।
For Private And Personal Use Only