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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२८ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [मकारादि (५३३६) महाद्राक्षासवः (१) | पातन यन्त्र) के मुखमें केसर और कस्तूरीकी पोटली लगा देनी चाहिये । ( योग चिन्तामणि । अ. ७) __इसे अर्क निकालने के ३ बाद सेवन करना द्राक्षायाश्च पलशतं सितायास्तचतुर्गुणम् । | चाहिये । इसमेंसे २ पल दोपहरको और ४ पल कर्कन्धूमूलं तस्याधैं मूलार्धे धातुपुष्पको । शामको सेवन करने तथा गरिष्ठ और स्निग्ध क्रमुकं च लवङ्गं च जातिपुष्पफलानि च ।। आहार करनेसे अत्यन्त वीर्य वृद्धि होती है । चातुर्जातं त्रिकटुकं मस्तकी करहाटकम् ॥ इसके प्रभावसे मनुष्य अनेकों स्त्रियोंसे समागम आकल्लकरभं कुष्ठं पलानि दश चाहरेत् । रम कुम० पलानि दश चाहत् । कर सकता है। एभ्यश्चतुर्गुणतोयं भाण्डे चैव विनिःक्षिपेत् ।। ( व्यवहारिक मात्रा-२-३ तोले । ) स्थापयेद् भूमिमध्ये तु चतुर्दशदिनानि च । महाद्राक्षासवः (२) ततो जातरसं शुद्धं क्षिपेत्कच्छपयन्त्रके ॥ धराधो निक्षिपेत्तस्य मृगनाभिं सकुङ्कमम् ।। प्रयोग संख्या ३१३२ " द्राक्षासव (महा) एतत्सिद्धं क्षिपेद्धीमान् काचभाण्डे निधापयेत ॥ ५ ” देखिये । त्रिदिनेषु व्यतीतेषु तत्पेयं पलसंख्यया । (५३३७) माचिकासवः मध्यान्हे द्विपलं ग्राह्यं सन्ध्याकाले चतुष्पलम् ॥ (गदनिगह । आसवो.) गरिष्ठस्निग्धमाहारं भक्षयेदस्य सेवकः। माचिकायाः शताध तु द्रोणेऽपांच विपाचयेत् । वीर्याभिवृद्धिः प्रभवेन्नराणां रामा सुवश्या ॥ तस्मिंश्चतुर्थशेषे तु पृते शीते प्रदापयेत् ।। एते धन्या मनुजा नरेन्द्रा द्राक्षासवं ये किल गुडस्य द्विशतं दत्वा तत्सर्व घृतभाजने । सेवयन्ति ॥ विडङ्गपिप्पलीकृष्णावगेलापत्रकेसरैः ।। मुनक्का ६। सेर, मिसरी २५ सेर; बेरीकी मरिचैश्च तथा चूर्ण सम्यकृत्वा विचक्षणः । जड़ ३ सेर १० तोले, धायके फूल १ सेर ४५ क्षिपेच्च पालिकै गर्घटनीयं समन्ततः ॥ तोले तथा सुपारी, लौंग, जावत्री, जायफल, दाल- ततो यथावलं पीत्वा कासश्वासगलामयान् । चीनी, तेजपात, इलायची, नागकेसर, सोंठ, मिर्च, हन्ति यक्ष्माणमत्युग्रमुरःसन्धानकारकः ॥ पीपल, रूमीमस्तगी, धतूरा, अकरकरा और कूठ माचिकासव इत्येष ब्रह्मणा निर्मितः पुरा । १०-१० पल (५०-५० तोले) ले कर सबको । ३ सेर १० तोले मकोयको ३२ सेर पानीमें कूटकर सबसे ५ गुने पानी में मिलादें और चिकने पकावें और ८ सेर पानी शेष रहने पर छान लें। पात्रमें भरकर उसका मुख बन्द करके उसे भूमिमें जब वह ठण्डा हो जाय तो उसमें १२॥ सेर गुड़; दबा दें एवं १४ दिन पश्चात् निकालकर उसका १० तोले पीपलका चूर्ण तथा ५-५ तोले बाय • अर्क खींच लें । अर्क खींचते समय भबके (अर्क- बिडंग, दालचीनी, इलायची, तेजपात, नागकेसर For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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