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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आसवारिष्टप्रकरणम् ] चतुर्थो भागः १२७ तेजपात, काली मिरच और केवटीमोथा ११-१।। तस्मिन् दद्यात्तु कृष्णायाः प्रस्थं प्रस्थत्रयं तथा। तोला लेकर सबको अधकुटा करके ३२ सेर पानीमें त्रिफलाया बिडंगानां कुडवं मरिचस्य च ॥ पकावे और ८ सेर पानी शेष रहने पर छानकर काश्मरीफलमद्वीकापरूषकफलानि च । उसमें ४ सेर शहद मिलाकर सबको चिकने मट वत्सकस्य च बीजानि समानि मरिचेन तु ॥ केमें भरकर उसका मुख बन्द करके रख दें। और १५ दिन पश्चात् निकालकर छान लें। पञ्चमूलं च षड्ग्रन्थां दन्ती चित्रकमेव च । ___इसे १० तोलेकी मात्रानुसार सेवन करनेसे | द्वे द्वे पले च भल्लाताद्भिषक् समुपकल्पयेत् ॥ कफज और पित्तज प्रमेह तथा पाण्डु, अश, यवपल्ले स्थितः पेयोऽरिष्टो मात्रा बलं प्रति । अरुचि, ग्रहणी, किलास कुष्ठ और अन्य अनेक पाण्डुरोगोदरे हन्ति ग्रहण्यविकारनुत् ।। प्रकारके कुष्ठ नष्ट होते हैं। परं भगन्दरप्लीहशोषकासामयापहः । ( व्यवहारिक मात्रा-३-४ तोले ।) अग्निसन्दीपनः पथ्यो वाधिर्यस्थौल्यनाशनः ॥ (५३३४) मध्वासवः (५) मस्त्वासव इति ख्यातो लेखनो मेदुरे हितः॥ (वा. भ. । अ. १० ग्रहणी.; च. सं.। चि. __३२ सेर अत्यन्त निर्मल और सफेद मस्तु अ. १९ ग्रहण्य.; वं. से. । ग्रहण्य.) (दह का पानी) ले कर उस में ६। सेर गुड़ तथा १ सेर मध्कपुष्पस्वरसं भृतमर्द्धक्षयीकृतम् ।। पीपल; १-१ सेर हर्र, बहेड़ा, आमला; २० तोले क्षौद्रपादयुतं शीतं पूर्ववत्सनिधापयेत् ॥ बायबिडंग, २० तोले काली मिर्च और २०-२० तोले खम्भारीके फल, मुनक्का, फालसेके फल और तत्पिबन्ग्रहणीदोषाअयेत्सर्वान्हिताशनः॥ इन्द्रजौ तथा १०-१० तोले शालपर्णा, पृष्टपणी, १६ सेर महुवेके फूलोंके स्वरसको पकाकर | कटेली, कटेला (बनभंटा), गोखरु, पीपलामूल, आधा शेष रक्खें और फिर उसे ठण्डा करके उसमें दन्तीमूल, चीतामूल और शुद्ध भिलावा कूट कर २ सेर शहद मिलाकर चिकने पात्रमें भरकर उसका मिलादें । फिर सबको बच तथा कूटके चूर्णका मुख बन्द करके रख दें और १ मास पश्चात् लेप किये हुवे मटके में भरकर उसका मुख बन्द निकालकर छान लें । इसे सेवन करने और पथ्य | कर दें और उसे अनाजके ढेरमें दबा दें तथा १ पालन करने से समस्त ग्रहणी विकार नष्ट होते हैं । मास पश्चात् निकालकर छान लें। (५३३५) मस्त्वासवः इसे यथोचित मात्रानुसार सेवन करनेसे पाण्डु, (गदनिगह । आसवा.) उदररोग, ग्रहणी-विकार, अर्श, भगन्दर, प्लीहा, वंशपत्रीमतीकाशमस्तु द्रोणे सुनिर्मले। शोष, खांसी, आम, बधिरता और स्थूलताका नाश क्षिपेद् गुडतुलां भाण्डे बचा कुष्ठविलेपिते ॥ होता तथा अग्नि दीप्त होती है। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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