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तैलपकरणम्]
चतुर्थों भागः
(५३२३) मेध्याविकतैलम्
मेंढासिंगी, गोखरु, करञ्जफल, गिलोय और (व. से. । क्षुदरोगा.) दशमूलकी प्रत्येक वस्तु समान भाग लेकर उनके मूलकं बीजमुद्धत्य चोन्मत्तकदलानि तु। काथ तथा कल्कसे तैल या घृत सिद्ध करें। सूर्यावर्त्तशुकाख्याश्च मेध्यावीरसपाचितम् ॥ | क्याथार्थ-सब चीजें समान भाग मिश्रित ७ तैलं मेध्याविकं नाम वराहद्विजनाशनम् ।। | सेर (प्रत्येक आधा सेर), जल ५६ सेर, शेष क्वाथ कण्ड्रकुष्ठप्रशमनं कृच्छं ददविनाशनम् ॥ १४ सेर । .
कल्कार्थ-प्रत्येक वस्तु २॥ तोले । (सब बलवर्णकरश्चैव कृष्णात्रेयेण भाषितम् ॥ ___ मूलीके बीज, धतूरेके पत्ते, हुलहुल, शुकनासा
मिलित ३५ तोले) घी या तेल-३॥ सेर । ( कौंचके बीज ) और ब्राह्मी १-१ सेर लेकर,
प्रथम कुष्ठीको स्नेहं पानादि कराके यह घृत सबको अधकुटा करके ४० सेर पानीमें पकावें ।
खिला और इस तेलकी मालिश करावें । इससे जब १० सेर पानी शेष रहे तो छान लें । इसमें
वात कुष्ठ नष्ट होता है।
(५३२६) मेहमिहिरतैलम् २॥ सेर तेल मिलाकर पुनः पकावें और पानी जल
(धन्व. । प्रमेह.) जाने पर तेलको छान लें।
| पञ्चमूल्यमृताधात्रीदाडिमानां तुलां पचेत् । ___ यह तेल शूकरदंष्ट्रा (भगन्दरवत् राग विशष), जलद्रोणे स्थिते पादे तैलप्रस्थं विपाचयेत् ॥ खुजली, कुष्ठ, और दादको नष्ट करके बल वर्णकी
क्षीर तैलसमं कल्कान् भूनिम्बगोक्षुरम् । कृद्धि करता है।
दाडिमं रेणुकं बिल्वं दारुदावीबलाहकान् ॥ (५३२४) मेषरोममषीतैलयोगः
त्रिफला तगरं द्राक्षा जम्बाम्रवल्कलाभयात् । (व. से. । नाडीवगा.)
नाम्नेदं मेहमिहिरं सर्वमूत्रामयान् जयेत् ।। मेषरोममषी तस्यां कटुतैलविपाचितम् ।
| हस्तपादशिरोदाहं दौर्बल्यं कृशनां तथा। नाहीत्रणं चिरोद्भूतं जयेत्तूलकसङ्गमात् ॥ क्षीणेन्द्रिया नष्टशुकाः स्वीक्षीणाश्चापि ये नराः॥
कडवे तेल में भेड़ के बालोंकी स्याही (अध जली | तेषां वल्यकरं वृष्यं वयः स्थापनमेव च ॥ राख) पका कर सुरक्षित रक्खें । इस तेल में लईकी
शालपर्णी, पृष्ठपर्णी, कटेली, कटेला और बत्ती भिगोकर नाडीत्रण (नासूर) में भरनेसे पुराना गोखरु तथा गिलोय, आमला और अनारकी छाल नासूर भी शीघ्र ही भर जाता है।
प्रत्येक ६२॥ तोले (१२॥ छंटाक) लेकर सबको (५३२५) मेषशृङ्गीतैलम् अधकुटा करके ३२ सेर पानीमें पकावें। जब ८
(सु. स. । चि. अ. ९) सेर पानी शेष रहे तो छान लें । २ सेर तेलमें यह तत्रप्रथममेव कुष्ठिनं स्नेहपानविधानेनोपपादयेत्। क्वाथ, २ सेर दूध और निम्नलिखित कल्क मिला मेषशृङ्गीश्वदंष्टासाष्टागुडूचीद्विपश्चमूलीसिद्धं कर मन्दाग्नि पर पकायें। जब पानी जल जाय तो तैलं घृतं वा वातकुष्ठिना पानाभ्यङ्गयोविदध्यात्। तेलको छान लें ।
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