________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तैलप्रकरणम् ]
चतुर्थो भागः
९७
(५२८४) मरिचादितैलम् (१) कल्क-काली मिर्च, सफेद चन्दन, देवदारु,
( वा. भ. । चि. अ. १९ कुष्ठा.) | हल्दी, दारुहल्दी, कमलपुष्प, नागरमोथा, मनमरिचं तमालपत्रं कुष्ठं समनःशिलं सकासी- सिल, गोबरका रस, निसोत, कनेरकी छाल,
सम् ।
आकका दूध और बछनाग २-२ तोले लेकर तैलेन युक्तमुषितं सप्ताहं भाजने ताम्र॥ कूटने योग्य चीज़ोंको कूट लें । तेनालिप्तं सिध्मं सप्ताहाद्धर्मसेविनोऽपैति । २०८ तोले ( २॥ सेर ८ तोले ) सरसों के मासान्नवं किलासं स्नानेन विना विशुद्धस्य ॥ तेलमें उपरोक्त कल्क और १० सेर ३२ तोले
१ सेर तिलके तेलमें २-२ तोले काली गोमूत्र मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें । जब मूत्र मिरच, तेजपात, कूठ, मनसिल और कसीसका
जल जाए तो तेलको छान लें। चूर्ण मिलाकर, तांबेके बरतनमें भरकर (धूपमें ) | इस तेल की मालिशसे कठिन चर्मदल, मण्डल, रख दें । सात दिन पश्चात् सबको अच्छी तरह सिध्म, विचर्चिका, किलास कुष्ठ, और विसर्प नष्ट घोटकर बोतलमें भर कर सुरक्षित रवखें । होता है। __इसे मल कर रोगीको थोड़ी देर धूपमें बैठना |
। (५२८६) मरिचाद्यं तैलम् (१). चाहिये।
(ग. नि. । तैला.; शा. सं. । म. खं. अ. ९; ___ इसकी १ सप्ताहकी मालिशसे सिध्म नष्ट हो
च. द. । कुष्ठा.; धन्व. । कुष्ठा. जाता है। यदि १ मास तह नित्य इसकी मालिश की जाय और स्नान न किया जाय तो नवीन
. मा.; भै. र.; व. से. । कुष्ठा.) किलासकुष्ठ नष्ट हो जाता है।
मरिचालशिलाब्दापयोऽश्वारजटात्रित् । (५२८५) मरिचादितैलम् (२)
शकद्रसविशालारुकूनिशायुग्दारुचन्दनैः ।। ( यो. चि. । अ. ६) कटुतैलात् पचेत् प्रस्थं द्वयाविषपलान्वितैः । मरिचचन्दनदारुनिशाद्वयं
सगोमूत्रस्तदभ्यङ्गाद् दद्रुश्वित्र विनाशनम् । ___ जलजमेघशिलासशकद्रसैः। सर्वेष्वपि च कुष्ठेषु तैलपेतन् प्रशस्यते ॥ तृतश्चाश्वहराकंपयोविषैः
कल्क-काली मिर्च, हरताल, मनसिल, नागसुरभिमूत्रयुतं विपचेद्भिषक् ॥ रमोथा, आकका दूध, कनेरको जड़, निसोत, कटुकतैलमिदं मरिचादिकं
गोबरका रस, इन्द्रायण, कूठ, :हल्दी, दारु हल्दी, कठिनचर्मदलारसकापहम् । देवदारु तथा सफेद चन्दन २॥-२॥ तोले और बहुलमण्डलसिध्मविचर्चिका विष ५ तोले लेकर पीसने योग्य चीज़ोंका चूर्ण
प्रचुरकुष्ठकिलासविसर्पिजित् ॥ । करलें ।
03
For Private And Personal Use Only