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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - [६६) भारत-भैषज्य रत्नाकर।। [दकारादि मुनक्का, मुलैठी, बिदारीकन्द, खजूर, नील, । (३०७४) द्राक्षादिघृतम् (५) मजीठ, इन्द्रायन, काकोली, क्षीरकाकोली, बड़ी (च. सं. । चि. स्था. अ. २९; वा. भ. । कटेली; छोटी कटेली, बासा, पियाबांसा, मेदा, चि.. अ. २२ सफेद चन्दन, चमेलीके पत्ते, नीमके पत्ते, हर्र, द्राक्षा मधूकतोयाभ्यां सिद्धं वा ससितोपलम् । काला निसोत, गिलोय, जीवक, ऋषभक, मेदा, महामेदा, भरंगी, लाल चन्दन, मुनक्का और नील घृतं पिबेत्तथा क्षीरं गुडूचीस्वरसे शृतम् ।। दूर्वा; सब चीजें समान भाग मिश्रित २० तोले ___ दाख और मुलैठी (या महुवेके फूलों ) के लेकर पानीके साथ पीसकर कल्क बनावें । फिर काथके साथ घृत पकाकर उसमें मिश्री मिलाकर यह कल्क, २ सेर गायका घी, ८ सेर गायका दूध सेवन करनेसे या गिलोयके स्वरसके साथ दूध पऔर ८ सेर गायका दही लेकर सबको एकत्र मिला काकर सेवन करनेसे वातरक्त नष्ट होता है। कर पकावें । जब दूध इत्यादि जल जाय तो (३०७५) द्राक्षाचं घृतम् कृतको छानलें। (वं. से. । नेत्र.; ग. नि. । परिशिष्ट घृता.। ___ इसे मिसरीसे मीठा करके पीना चाहिये । द्राक्षाचन्दनमञ्जिष्ठाकाकोलीद्वयजीरकैः । यह घृत स्त्री और पुरुष दोनेांकेलिये हित सिताशतावरीमेदापुण्ड्राक्षमधुकोत्पलैः ॥ कारी है। पचेजीर्ण घृतपस्थं समक्षीरं विचूर्णितैः । - इसके सेवनसे गुदा, भग, मेढू और रोम- हन्ति तच्छुक्रतिमिरं रक्तराजी शिरोरुजम् ॥ कूपेसेि निकलने वाला रक्तपित्त भी नष्ट हो जाता है। दाख, सफेद चन्दन, मजीठ, काकोली, क्षीरइसके अतिरिक्त यह धृत ज्वर, वातरक्त, । काकाली, जीरा, मिश्री शतावर, मेदा ( अभावमें योनिशूल, भ्रम, मद, उन्माद, रक्तप्रमेह, पित्तज शतावर ), कमलगट्टा, मुलैठी और कमल के कल्क और रक्तज कुष्ठ, क्षय, क्षत, राजयक्ष्मा और पाण्डु ! तथा समान भाग दूधके साथ पुराना घृत पकाकर को भी नष्ट करता है। सेवन करनेसे आँखांका फूला, तिमिर, लाल रेखाएं ___यह घृत रोगीको पिलानेके अतिरिक्त बस्ती और शिर पीडा नष्ट होती है। और नस्य में भी प्रयुक्त करना चाहिये। (विधि—कल्ककी सब चीजें समान भाग ( पाककी उत्तमताके लिये इसमें ८ सेर मिली हुई २० तोले, दूध २ सेर, पानी ८ सेर, पानी भी डालना चाहिये ।) । घी २ सेर । सबको एकत्र मिलाकर पकावें । ( मात्रा-१ से २ तोले तक ।) (मात्रा--३ से ६ माशे तक।) १ गदनिग्रहमें श्लोक भिन्न है तथा चन्दन, शतावर और मेदा नहीं लिखीं तथा राजादन (खिरनी) अधिक लिखी है एवं पुण्डाक्ष की जगह पुण्डरीक और जीरककी जगह जीक्क पाठ है। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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