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[६६) भारत-भैषज्य रत्नाकर।।
[दकारादि मुनक्का, मुलैठी, बिदारीकन्द, खजूर, नील, । (३०७४) द्राक्षादिघृतम् (५) मजीठ, इन्द्रायन, काकोली, क्षीरकाकोली, बड़ी (च. सं. । चि. स्था. अ. २९; वा. भ. । कटेली; छोटी कटेली, बासा, पियाबांसा, मेदा,
चि.. अ. २२ सफेद चन्दन, चमेलीके पत्ते, नीमके पत्ते, हर्र,
द्राक्षा मधूकतोयाभ्यां सिद्धं वा ससितोपलम् । काला निसोत, गिलोय, जीवक, ऋषभक, मेदा, महामेदा, भरंगी, लाल चन्दन, मुनक्का और नील
घृतं पिबेत्तथा क्षीरं गुडूचीस्वरसे शृतम् ।। दूर्वा; सब चीजें समान भाग मिश्रित २० तोले
___ दाख और मुलैठी (या महुवेके फूलों ) के लेकर पानीके साथ पीसकर कल्क बनावें । फिर
काथके साथ घृत पकाकर उसमें मिश्री मिलाकर यह कल्क, २ सेर गायका घी, ८ सेर गायका दूध
सेवन करनेसे या गिलोयके स्वरसके साथ दूध पऔर ८ सेर गायका दही लेकर सबको एकत्र मिला
काकर सेवन करनेसे वातरक्त नष्ट होता है। कर पकावें । जब दूध इत्यादि जल जाय तो (३०७५) द्राक्षाचं घृतम् कृतको छानलें।
(वं. से. । नेत्र.; ग. नि. । परिशिष्ट घृता.। ___ इसे मिसरीसे मीठा करके पीना चाहिये ।
द्राक्षाचन्दनमञ्जिष्ठाकाकोलीद्वयजीरकैः । यह घृत स्त्री और पुरुष दोनेांकेलिये हित
सिताशतावरीमेदापुण्ड्राक्षमधुकोत्पलैः ॥ कारी है।
पचेजीर्ण घृतपस्थं समक्षीरं विचूर्णितैः । - इसके सेवनसे गुदा, भग, मेढू और रोम- हन्ति तच्छुक्रतिमिरं रक्तराजी शिरोरुजम् ॥ कूपेसेि निकलने वाला रक्तपित्त भी नष्ट हो जाता है।
दाख, सफेद चन्दन, मजीठ, काकोली, क्षीरइसके अतिरिक्त यह धृत ज्वर, वातरक्त, । काकाली, जीरा, मिश्री शतावर, मेदा ( अभावमें योनिशूल, भ्रम, मद, उन्माद, रक्तप्रमेह, पित्तज शतावर ), कमलगट्टा, मुलैठी और कमल के कल्क
और रक्तज कुष्ठ, क्षय, क्षत, राजयक्ष्मा और पाण्डु ! तथा समान भाग दूधके साथ पुराना घृत पकाकर को भी नष्ट करता है।
सेवन करनेसे आँखांका फूला, तिमिर, लाल रेखाएं ___यह घृत रोगीको पिलानेके अतिरिक्त बस्ती और शिर पीडा नष्ट होती है। और नस्य में भी प्रयुक्त करना चाहिये।
(विधि—कल्ककी सब चीजें समान भाग ( पाककी उत्तमताके लिये इसमें ८ सेर मिली हुई २० तोले, दूध २ सेर, पानी ८ सेर, पानी भी डालना चाहिये ।)
। घी २ सेर । सबको एकत्र मिलाकर पकावें । ( मात्रा-१ से २ तोले तक ।)
(मात्रा--३ से ६ माशे तक।) १ गदनिग्रहमें श्लोक भिन्न है तथा चन्दन, शतावर और मेदा नहीं लिखीं तथा राजादन (खिरनी) अधिक लिखी है एवं पुण्डाक्ष की जगह पुण्डरीक और जीरककी जगह जीक्क पाठ है।
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