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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घृतपकरणम्] तृतीयो भागः। [६५] - जलाढके पादशेषे रसमामलकस्य च । अभावमें शतावर ) और जीवक ( अभावमें विघृतमिथुरसं क्षीरमभयाकल्कपादिकम् ॥ दारीकन्द)। साधयेत्तं घृतं सिद्धं शर्कराक्षौद्रपादिकम् ।। ____ इन तीनों प्रयोगोंमें से किसी के कल्क और प्रयोगात् पिसगुल्मघ्नं सर्वपित्तविकारनुत् ॥ गायके दूधके साथ भैंसका धी पका लीजिये । यह दाख (मुनक्का), मुलैठी, खजूर, बिदारीकन्द, घृत पित्तज हृद्रोगको नष्ट करता है। शतावरी, फालसा (फल), हर्र, बहेड़ा तथा आमला (घी २ सेर, दूध ८ सेर, कल्क २० तोले ।) १-१ पल (५-५ तोले) लेकर सबको ८ सेर (३०७३) द्राक्षादिघृतम् (४) पानीमें पकावें। जब २ सेर पानी शेष रहे तो छान (हा. सं. । स्था. ३ अ. १०) लें, फिर यह काथ, २ सेर आमलेका रस, २ सेर मृद्वाका मधुकं विदारि वसुधा नीली समझा ईखका रस और २ सेर दूध, तथा २ सेर घी और २० तोले हर्रका कल्फ लेकर सबको काकोल्यो वृहतीयुगं वृषसहामेदा सितं चन्दनम्।! एकत्र मिलाकर पकावें । जब घृतमात्र शेष रह जातीपल्लवनिम्बपल्लवशिवाश्यामामृता जीवको। जाय तो छानकर ठण्डा करलें और उसमें २०- | मेदे द्वे भृगु चन्दनं मधुरसा श्यामा समांशा२० तोले मिश्री तथा शहद मिलाकर रक्खें । स्त्वमी।। ___ यह घृत पित्तज गुल्म और अन्य समस्त पित्तज | पक्त्वा गोपयसा दधी च तुलितं चाज्यं चतुरोगोंको नष्ट करता है। थोशका ( मात्रा-१ से २ तोले तक । ) मत्स्यण्डीमधुरं च सिद्धमिति चेत् पानं प्रशस्त (३०७२) द्राक्षादिघृतम् (३) नृणाम् ।। (च. सं. । चि. अ. २६) स्त्रीणां चापि हितं निहन्ति रुधिरं पित्तं गुढे द्राक्षाबलाश्रेयसिशर्कराभिः मेढ़े चापि च रोमकूपकपथे वृतं निहन्त्यसनम् ।। खर्जूरवीरर्षभकोत्पलैश्च । काकोलिमेदायुगजीवकैश्च एतद् द्राक्षाभिधानं घृतमपि विहितं रक्तपित्ते परेरा क्षीरे च सिद्धं महिपीघृतं स्यात् ।। वातामुग्योनिशूले भ्रममदशिलान्मापरक्त(१) द्राक्षा ( मुनक्का ), खरैटी, गजपीपल और मिश्री। বিবালাব বন সংর (२) खजूर, काकोली ( अभावमें असगन्ध ), ऋषभक (अभावमें विदारीकन्द), और कमल। पाने वस्तौ च नस्य हितमपि भाव (३) काकोली, मेदा, महामेदा ( दोनेांके ! For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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