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[७५८ ]
चिकित्सा-पथ-प्रदविनी संख्या प्रयोगमाम मुख्य गुण । संख्या प्रयागनाम
रस-प्रकरणम् ४९३६ भक्तोत्तर चूर्णम् अन्त्रवृद्धि, भयंकर
वातज वृद्धि, उदर रोग, शूल।
(५०) प्रणाधिकारः कषाय-प्रकरणम् | ३५१३ निर्गुण्डी तैलम् दुष्ट नाडी व्रण, अ. २८१२ दण्डोत्पला स्वरसः शस्त्रका घाव ।।
पची, विस्फोटका २८४७ दशमूलावसेचनम् ब्रणप्रक्षाला योग है। ४११३ पटोली , अग्निदग्ध व्रणकी ३४०९ न्यग्रोधादि गणः वण, भग्न, दाह ।
पीड़ा, स्राव, दाह । ३७४४ पटोलादि काथः धावको शुद्ध करता | ४१३४ प्रपौण्डरीकाचं तैलम् व्रण रोपण । और भरता है। ४८८३ भल्लातक तैलम् ब्रण, नाडीप्रण; क
फवातज अपची। चूर्ण-प्रकरणम् | ४८८९ भूधात्र्यादि , दुष्ट, स्रावयुक्त और ३८८६ पश्चवल्कलादिचूर्णम् घावको भरता है।
छोटे छिद्र वाले पु३९९१ प्रियङ्ग्यादि " , "
राने घाव ।
गुग्गुलु-प्रकरणम्
लेप-प्रकरणम् ३०१० दशक गुग्गुलुः अण,वातरक्त,सूजन ।।
जन ३१३३ दग्धयवादि लेपः अग्निदग्ध व्रण ।
३१४६ दूर्वादि , घावोंका पित्तन घृत-प्रकरणम्
शोथ । ३०६१ दाादि घृतम् अण रोपण ।
३१५४ द्राक्षादि , व्रणशोधक | ३०६३ दूर्वादि , " " ४१०६ प्रपौण्डरीकार्य घृतम् , ,
३३११ धत्तूरपत्रादि । व्रणशोथ ।
३३१३ धातकी चूर्ण , अग्निदग्ध व्रण, मर्मतैल-प्रकरणम्
स्थानोंका दुष्ट नाड़ी ३१०८ दूर्वादि तैलम् अण रोपण।
व्रण, विसर्प, खता ३११२ द्रवन्त्यादि , व्रण शोधक ।
विष ।
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