SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 753
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [७५८ ] चिकित्सा-पथ-प्रदविनी संख्या प्रयोगमाम मुख्य गुण । संख्या प्रयागनाम रस-प्रकरणम् ४९३६ भक्तोत्तर चूर्णम् अन्त्रवृद्धि, भयंकर वातज वृद्धि, उदर रोग, शूल। (५०) प्रणाधिकारः कषाय-प्रकरणम् | ३५१३ निर्गुण्डी तैलम् दुष्ट नाडी व्रण, अ. २८१२ दण्डोत्पला स्वरसः शस्त्रका घाव ।। पची, विस्फोटका २८४७ दशमूलावसेचनम् ब्रणप्रक्षाला योग है। ४११३ पटोली , अग्निदग्ध व्रणकी ३४०९ न्यग्रोधादि गणः वण, भग्न, दाह । पीड़ा, स्राव, दाह । ३७४४ पटोलादि काथः धावको शुद्ध करता | ४१३४ प्रपौण्डरीकाचं तैलम् व्रण रोपण । और भरता है। ४८८३ भल्लातक तैलम् ब्रण, नाडीप्रण; क फवातज अपची। चूर्ण-प्रकरणम् | ४८८९ भूधात्र्यादि , दुष्ट, स्रावयुक्त और ३८८६ पश्चवल्कलादिचूर्णम् घावको भरता है। छोटे छिद्र वाले पु३९९१ प्रियङ्ग्यादि " , " राने घाव । गुग्गुलु-प्रकरणम् लेप-प्रकरणम् ३०१० दशक गुग्गुलुः अण,वातरक्त,सूजन ।। जन ३१३३ दग्धयवादि लेपः अग्निदग्ध व्रण । ३१४६ दूर्वादि , घावोंका पित्तन घृत-प्रकरणम् शोथ । ३०६१ दाादि घृतम् अण रोपण । ३१५४ द्राक्षादि , व्रणशोधक | ३०६३ दूर्वादि , " " ४१०६ प्रपौण्डरीकार्य घृतम् , , ३३११ धत्तूरपत्रादि । व्रणशोथ । ३३१३ धातकी चूर्ण , अग्निदग्ध व्रण, मर्मतैल-प्रकरणम् स्थानोंका दुष्ट नाड़ी ३१०८ दूर्वादि तैलम् अण रोपण। व्रण, विसर्प, खता ३११२ द्रवन्त्यादि , व्रण शोधक । विष । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy