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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [७३६] चिकित्सा-पथ-प्रदर्शिना - - संख्या प्रयोगनाम मुख्य गुण संख्या प्रयोगमाम मुख्य गुण तेल-प्रकरणम् ४४५६ प्रमदानन्दो रसः भयंकर प्रमेह, प्र४१३६ प्रमेह मिहिर तैलम ध्वजभंग, दाह, प्र हणी, कफ, वात मेह । शूल, मधुमेहनाशक वीर्य तथा कामश क्ति वर्द्धक। आसव प्रकरणम् । ३१२७ देवदासिवः ४४५९ प्रमेहकुआरकेसरीरसः रसायन है। १८ प्रमेह, मूत्रकृच्छ्, प्रकारके प्रमेहको वातव्याधि । १ मासमें नष्ट कलेप-प्रकरणम् रता है। उत्साह, ४९१८ मृङ्गराजादि लेपः वातज प्रमेह पिडिका। शुक्र अग्निवर्द्धक । ४४६० प्रमेहकुलान्तको रसः वसामेह । रस-प्रकरणम् ४४६१ , २० प्रकारके प्रमेह, ३६१४ नागभक्त्यादि रसः सुरामेह । मूत्रकृच्छू, अश्मरी, ३६१६ नागभस्म योगः समस्त प्रमेह । मूत्राघात, अरुचि। ३६३६ नागेन्द्र गुटिका सिकतामेह । ४४६२ प्रमेहकेतु रसः प्रमेह । ३६३७ नागेन्द्र रसः प्रमेह ४४६३ प्रमेहगजसिंहो रसः समस्त प्रमेह । ३६५४ नित्यारोग्येश्वरो रसः दुस्साध्य लालामेह । | ४४६४ प्रमेहबद्धरसः , " ४२६३ पश्चलोह रसायनम् समस्त प्रमेह, मूत्र- ४४६५ प्रमेहसिन्धुतारक रसः , , कृच्छू, अश्मरी, अप- | ४४६६ प्रमेहहरो रसः प्रमेह । । स्मार, क्षय। ४४६७ प्रमेहाङ्कुश रसः , ४२७४ पश्चाननो रसः शोष, प्रमेह । ४७३५ बहुमूत्रान्तको रसः बहुमूत्र । ४२७६ ॥ २० प्रकारके प्रमेह, ४७३६ , , बहुमूत्र और बहुअश्मरी, मूत्राघात, मूत्रके उपद्रव । उग्र मूत्रकृच्छ्र । ४७३७ बहुमूत्रान्तक लोहम् बहुमूत्र । ४३०५ पथ्यादि चूर्णम् बहुमूत्र रोग ४९५१ भीमपराक्रम रसः समस्त प्रमेह । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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