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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सा-पथ-प्रदर्शिनी [७३६] (३१) प्रमेहाधिकारः संख्या प्रयोगमाम मुख्य गुण संख्या प्रयोगमाम मुख्य गुण - कषाय-प्रकरणम् पिडिका नहीं नि २८६९ दाादि काथः प्रमेह । कलने पाती । ४८३४ भूधात्र्यादि योगः असाध्य प्रमेह । २८९२ दुर्वादि , शुक्रमेह । २९३८ द्विनिशादिशीत अवलेह-प्रकरणम् कषायः प्रमेह । ३०३२ द्राक्षापाकः प्रमेह, मूत्राघात, ३२५५ धात्र्यादि काथः प्रमेह । मूत्रकृच्छ, हाथपैरां ३४०६. नीलोत्पलादि , पित्त प्रमेह । की दाह । ३४०७ " ३२८५ धात्रीपाकः " प्रमेह, मूत्रकृच्छू, ३७७१ पथ्यादि कषायः " " पित्त। प्रमेह, जीर्णज्वर। ३८०० पलाश पुष्प काथः अनेक प्रकारका प्र- ४०४१ पूगपांसुर योगः ४०४२ पूगीपाकः प्रमेह, वायु, क्षीणता अग्निमांद्य, वृद्धावस्था ३८१० पाठादि , हस्ति मेह । ३८१४ पारिजातादिकाथा ष्टकम् उदकमेह, इक्षुमेह, घृत-प्रकरणम् सुरामेह, सिकतामेह ३०४१ दशमूल धृतम् प्रमेह पिडिका, प्रशनैमेह, लवणमेह, मेह के समस्त उपपिष्टमेह, सान्द्रमेह। द्रव। ३०५६ दाडिमाचं २० प्रकारके प्रमेह ४५१९ फलत्रिकादि काथः समस्त प्रमेह । मूत्राघात, अश्मरि, भयंकर मूत्रकृच्छू, चूर्ण-प्रकरणम् अफारा। ३४४५ निशादि चूर्णम् समस्त प्रमेह । | ३३०० धान्वन्तर , प्रमेह, शोथ, अर्श, ३४५१ न्यग्रोधादि , २० प्रकारके प्रमेह, प्रमेहपिडिका। मूत्रदोष । ३३०१ " " इसके सेवनसे प्रमेह । मेह । - For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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