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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सा-पथ-प्रदर्शिनी [७२९] - संख्या प्रयोगनाम मुख्य गुण । संख्या प्रयोग नाम मुख्य गुण तिमिर, लाल रेखाएं, लेप-प्रकरणम् शिरपीड़ा । ३१४८ दूर्वारसादिलेपः नेत्रपीड़ा । ४०६३ पटोलाचं घृतम् समस्त नेत्ररोग। ३५४५ निम्बुफलोभ४६५९ बलादि , तिमिर । वादि योगः नेत्ररोग। ४६६६ बिभीतकादि , समस्त नेत्ररोग। ४१७० पथ्यादि लेपः अभिष्यन्द आदि । ४८७७ भास्कराचं , तिमिर, शुक्तिक, पि ४१७१ नेत्रपीड़ा । , योगः ४१७६ पयस्यादि लेपः नेत्रपीड़ा, आंखोंकी ल्ल, अम्लाध्युषित, लाली। दृष्टिकी मन्दता, न ४१९० पारिजातादिकल्कः कफज नेत्रशूल । तान्ध्य, दिवान्थ्य। ४९१३ भूम्यामलक्यायो लेपः नवीन नेत्राभिष्यन्द। तैल-प्रकरणम् ३५२२ नीलोत्पलाचं तैसम् तिमिर, काच, न धूप-प्रकरणम् तान्थ्य, पटल, अर्जुन, पिल्ल, रुधि ३५६७ निम्बादि धूपः कफज नेत्राभिष्यन्द। रस्राव, पलकांकी खाज । अञ्जन-प्रकरणम् ३५२४ नृपवल्लभ , तिमिर, पटल, काच, ३१६४ दक्षाण्डत्वकाद्यञ्जनम् फूला, अर्म । नक्तान्ध्य आदि । | ३१६५ दन्तवर्तिः नेत्रबण, शुक्र। ४६९५ बिभीतकाचं , तिमिर । | ३१६६ दावीं रस किया दाह, अश्रुस्राव, ४८९७ भृङ्गराज , नेत्रांको स्वच्छ और पित्तज नेत्ररोग। १ मासमें बलि | ३१६७ दार्वाद्यञ्जनम् पित्तज तिमिर, नेत्र पलितको अवश्य वण। नष्ट कर देता है। ३१६८ दिव्यदृष्टिकरो रसः ४८९८ भृङ्गराज , नष्ट चक्षु को ठीक ३१६९ दृकप्रसादनी वर्तिः समस्त नेत्ररोगोंको करता है। नष्ट आर नेत्रोंको स्वच्छ करती है। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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