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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भारत-भैषज्य - रत्नाकरः । [ ६० ] द्रव पदार्थोंमें—गदनिग्रह में शुक्त अधिक लिखा है । शेष प्रयोग दोनों में समान है । (३०५८) दाधिकं घृतम् (२) ( च. द. । शूला. ) furrat नागरं बिल्वं कारवी चव्यचित्रकम् । हिङ्गुदाडिमवृक्षाम्ल व चाक्षाराम्लवेतसम् ॥ वर्षाकृष्णलवणमजाजीबीजपूरकम् । दधित्रिगुणितं सर्पिस्तत्सिद्धं दाधिकं स्मृतम् || गुल्मार्शः प्लीहहत्पार्श्वशूलयोनिरुजापहम् । दोषसंशमनं श्रेष्ठं दाधिकं परमं स्मृतम् ॥ कल्क द्रव्य - पीपल, सेठ, बेल छाल, कलौंजी, चव, चीता, हींग, अनारदाना, तिन्तड़ीक, बच, यवक्षार, अम्लवेतस, पुनर्नवा, काला नमक ( सञ्चल ), जीरा और बिजौरे नीबूकी छाल; सब चीजें समान भाग मिलाकर २० तोले लें। कल्ककी चीज़ों को पानी के साथ पीसलें फिर उन्हें २ सेर घी में मिला दें और उसमें ६ सेर दही डालकर कावें । यह घृत गुल्म, अर्श, तिल्ली, हृदयका शूल, पसली -शूल और योनि-शूलको नष्ट तथा दोषोंको शमन करता है । नोट- पाककी उत्तमता के लिये ८ सेर पानी भी डालना चाहिये । (३०५९) दाधिकं घृतम् (३) (बृ. यो. त. । ९८ त.; ग. नि. । धृता.; यो, र. । गुल्म; वं. से. । गु.; सु. सं. । चि. अ. गुल्म. ) विदाडिम सिन्धूत्थहुतभुग्व्योषजीरकैः । हिक्सौवर्चल क्षारचुक्रक्षाळषेतसेः || [ दकारादि बीजपूररसोपेतैः सर्पिर्दधिचतुर्गुणम् । साधितं दाधिकं नाम्ना गुल्महत्लीहनुत्परम् ॥ विडलवण, अनारदाना, सेंधानमक, चीता, सोंठ, मिर्च, पीपल, जीरा, हींग, सञ्चल ( कालानमक ) यवक्षार, चूका, तिंतड़ीक, और अमलबेत के कल्क, चार गुने दही, और बिजौरे के रससे सिद्ध किया हुआ घृत हृद्रोग, गुल्म और प्लीहा है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( कल्ककी सब चीजें समान भाग मिली हुई २० तोले, घी २ सेर, दही ८ सेर, बिजौरेका रस २ सेर, पानी ८ सेर । ) (३०६०) दारुहरिद्रादिघृतम् ( चं. सं. । चि. अ. १० ) त्वक् च दारुहरिद्रायाः कुटजस्य फलानि च । पिप्पली शृङ्गवेरश्च द्राक्षा कटुकरोहिणी ॥ षडूभिरेतैर्धृतं सिद्धं पेयामण्डावचारितम् । अतीसारं जयेच्छीघ्रं त्रिदोषमपि दारुणम् ॥ दारूहल्दी की छाल, इन्द्रजौ, पीपल, सोंठ, दाख और कुटकीके कल्क तथा काथ से सिद्ध घृत पेया या मण्डके साथ पीनेसे त्रिदोषज अतिसार भी नष्ट हो जाता है । ( निर्माण विधि - काथके लिए सब चीजें मिलाकर २ सेर लें और १६ सेर पानी में पकाकर ४ सेर पानी शेष रक्खें फिर उसमें १ सेर घो और उपरोक्त चीज़ोंका समान भाग मिश्रित ६ तोले ८ माशे कल्क मिलाकर पानी जलने तक पकावें । ) (३०६१) दार्व्यादिघृतम् (ग.नि. 1 विसर्प. ) दार्वीत्वमधुकं रोधं केसरं चावचूर्णितम् । पटोलपत्रं त्रिफलां कुर्यादि पलोन्मितान् ॥ पक्कं यष्ट्याह्नकल्केन घृतं स्यादुत्रणरोपणम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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