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घृतप्रकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[५९]
पचेद्गन्धपलाशीश्च द्रोणेऽपां द्विपलोन्मितम् । कल्क-भरंगी, तुम्बुरु, बच, पीपलामूल, यकैः कोलैः कुलत्यैश्च माषैश्च पास्थिफैः सह ॥ रास्ना, चीता, धनिया, अजवायन, खुरासानी अजकाथेऽस्मिन्दधिपात्रे च घृतप्रस्थं विपाचयेत् । वायन, अमलबेत, कालाजीरा, जीरा, हींग, हाऊस्वरसैर्दा डिमाम्रातमातुलुङ्गोद्भवेयुतम् ॥ बेर, कलौंजी, बासा, रेह मिट्टी, दन्तीमूल, निसोत, तथा तुषाम्बुधान्याम्लयुतैः श्लक्ष्णैश्च कल्कितैः। मूर्वा, गजपीपल, वायबिडंग, अनारकी छाल (या भाओतुम्बुरुषड्ग्रन्थाग्रन्थिरास्नानिधान्यकैः ।। अनारदाना ), गोखरु, खीरे और ककड़ीके बीज, यवानकयवान्यम्लवेतसासितजीरकैः।।
कटेली, पत्थरचटा, सौंफ, सज्जीक्षार, यवक्षार, अजाजीहिन पुषाकारवीवृषकोषकैः ॥ तुलसी, सारिवा, नीलके फल, सोंठ, मिर्च, पीपल, निकुम्भकुम्भमभपिप्पलीबेलदाडिमैः । सेंधा नमक, काच लवण और विड लवण । सब श्वदंष्ट्रात्रपुसेवा रुवीज हिंस्राश्मभेदकैः ॥ चीजें समान भाग मिलाकर २० तोले लें और मिसिद्विक्षारसुरससारिवानीलिनीफलैः। पानीके साथ पत्थर पर पिसवा लें। त्रिकटुत्रिपटपेतैर्दाधिकं तद्वयपोहति ॥
विधि-क्काथ, अन्य द्रव पदार्थ और रोगानाशुतरान्पूर्वाकष्टानपि च शीलितम् । कल्क तथा २ सेर घीको एकत्र मिलाकर पकावें, अपस्मारगरोन्मादमूत्राघातानिलामयान् ॥ । जब द्रव पदार्थ जल कर घी मात्र शेष रह जाय
काथ्य द्रव्य-दशमूलकी प्रत्येक ओषधि, तो उसे छान लें। . बला (खरैटी ), नीलका पञ्चाङ्ग, कलौंजी, सफेद इस 'दाधिक घृत' के सेवनसे कष्ट साध्य
और लाल पुनर्नवा ( साठी), पोखरमूल, अरण्डकी अपस्मार, विषविकार, उन्माद, मूत्राघात और वातजड़, रास्ना, असगन्ध, भरंगी, गिलोय, शठी | व्याधिका शीघ्र ही नाश हो जाता है। (कचूर) और कपूरकचरी । प्रत्येक २ पल (१०- ( मात्रा १ तोले से २ तोले तक।) १० तोले ) तथा जौ, कुलथी, बेर, और उर्द; नोट--उपरोक्त पाठ वागभट्ट से उद्धृत किया हरेक १ प्रस्थ (८० तोले ) पानी १ द्रोण गया है । गदनिग्रह के पाठानुसार इस प्रयोग में (३२ सेर)।
निम्न लिखित अन्तर पड़ता हैसबको अधकुटाकरके पकावें । जब ८ सेर गद निग्रह में काथमें-लाल पुनर्नवा, पानी रह जाय तो ठण्डा करके छान लें। अरण्ड, भरंगी और गन्धपलाशी नहीं है तथा ___ अन्य द्रवपदार्थ-दही ४ प्रस्थ (८ | गोखर और देवदारु अधिक हैं। सेर), अनारका स्वरस ८ सेर, अम्बाडाका स्वरस ___कल्कमें-बच, कालाजीरा, सौंफ, सारिवा, ८ सेर, बिजौरे नीबूका रस ८ सेर, तुषाम्बु८ सेर | नील के फल, सोंठ और पीपल नहीं हैं तथा दोनों और काजी ८ सेर ।
। पुनर्नवा, खरैटी, पाठा और शतावर, अधिक हैं। 1 तुषाम्बु और काजी बनानेकी विधि भारत भै. र. भाग १ के पृष्ठ ३५४ पर देखिये ।
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