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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org रसमकरणम् ] अन्त में उपरोक्त पांचों योग को एकत्र मिलाकर उसे १२ भावना भंगरेके रसकी नीमके सोटेसे घोटकर दें । तृतीयो भागः । इसे यथोचित अनुपान के साथ सेवन कराने से समस्त ज्वर नष्ट होते हैं । (४९५८) भूतभैरव चूर्णम् ( मात्रा - आधी रत्ती । ) नोट -- इस प्रयोग में ५ वां भाग संखिया पड़ता है अत एव अत्यन्त सावधानी पूर्वक सेवन कराना चाहिये । ( ज्वराङ्कुशरसः, तालाङ्को रसः ) १–—इस रसके द्रव्यांका परिमाण भिन्न भिन्न प्रन्थोंमें भिन्न भिन्न है। वै. र. और . नि. र. में हरताल १ भाग, नीला थोथा २ भाग और शुक्तिमस्म ६ भाग लिखी है तथा धतूरेके रसकी भावना देकर गोलियां बनाने के लिये लिखा है । भैषज्य रत्नावली में हरताल २ भाग, नीलाथोथा १ भाग और शुक्ति भस्म ४ भाग लिखी है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [६७३ ] शुद्ध हरताल और मोतीकी सीप ९-९ तोले तथा शुद्ध नीला थोथा ( तुत्थ ) २ तोले लेकर सबको १ दिन घीकुमार ( ग्वार पाठा) के रसमें घोटकर सुखाकर शरावसम्टमें बन्द करके गजपुटमें फूंक दें। जब पुट स्वांगशीतल हो जाय तो औषधको निकाल कर पीस लें । इसमें से प्रातः काल १ रत्ती दवा मिश्रीके साथ खिलानेसे शीत ज्वर १ ही दिनमें जाता रहता है। इससे किसी किसीको वमन हो जाती है। और किसीको नहीं भी होती । पथ्य-दोपहरको भात तथा शिखरन खानी ( र. चं. । ज्वर.; भा. प्र. म. खं. ज्वरा.; वै. र. । ज्वरा.; वृ. नि. र. । जीर्णज्वरा ; र. रा. सु.; भै. र. । ज्वरा . ) तालकं शुक्तिका चूर्ण तुल्यं तत्रोभयोरपि । नवमांशं तु तुत्थं स्यान्मर्दयेत्कन्यकाद्रवैः ॥ तत् संशुष्कमुपलैर्वन्यैर्गजपुटे पचेत् । शीतं तत् पेषयेच्चूर्ण गुआमात्रं सितायुतम् ॥ प्रभाते भक्षयेत्तेन याति शीतज्वरक्षयम् । वान्तर्भवति कस्यापि कस्यापि न भवत्यपि ॥ सप्ताष्टौ नव तिन्तिडीयकफलात्काठिल्लकानां एकेन दिवसेनैव शीतज्वरहरं परम् । मध्याह्नसमये पथ्यं भक्तं शिखरिणी तथा ॥ चाहिये । (४९५९) भूतभैरवरसः (१) रसे. (र. चं.; र. सा. स.; र. रा. सु. । कुष्ठा.; चि. म. । अ. ९; र. चि. म. । स्त. २; र. का. धे. । कुष्ठा. ४०.) शुद्धं पंचदशात्र तालक मितं शुद्धं च षट् For Private And Personal Use Only गन्धकः । दश ॥ हुण्डार्कपयोभिरेव सततं सञ्चर्यं तद्भावयेत् । रोहीतस्य जटारसेन मृदितं श्लक्ष्णं ततः खलितम् ॥ एकीकृत्य समस्तमेतदपि तट्टङ्केकमेतज्जयेत् । पश्चाद्वासविशुद्धवारिसहितं किञ्चिच्च तत्पीयते ।। ताम्बूलं शशिखण्डमण्डितवटीमिश्रं ततः स्वापयेत् ।
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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